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Sunday, July 27, 2025

निरंतर अपनी पात्रता को संवारना ही साधना है: स्वामी अनंतानंद सरस्वती




नित्य संदेश ब्यूरो 
मेरठ। शुभम करोति फाउंडेशन की ओर से आभा मानव मंदिर वरिष्ठ नागरिक सेवा सदन पंचवटी कॉलोनी प्रांगण में गोस्वामी तुलसीदास जयंती के उपलक्ष में रामचरितमानस बालकांड पर चौथे दिन प्रवचन हुए। 

कथा व्यास महामंडलेश्वर स्वामी अनंतानंद सरस्वती महाराज ने बताया कि पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि आप तो विषधर को भी अपना भूषण बना लेते हैं तो हे प्रभु आप मेरा उद्धार कीजिए। गुरु तत्व शिव तत्व के वचनों पर विश्वास एवं वेद के सिद्धांतों का जो सार है आप मुझको वह बताइए।भगवान का जो विस्तृत यश है उनका आप वर्णन कीजिए।उन्होंने कहा कि जो ना किसी से कोई द्वेष ना किसी से कोई आकांक्षा रखता है वह भी संन्यासी के समान है। पार्वती कहती हैं कि हे प्रभु आप मुझ पर कृपा कीजिए और श्री राम के गुणगान मुझे बताइए, फिर पार्वती जी ने भगवान शिव से रामचरित्र व लीलाओं के संबंध में कई प्रश्न किये। 
स्वामी जी ने कहा कि देह में जो आत्मभाव बना हुआ है कि मैं एक शरीर हूं , भगवान के तत्व को जानकर उसको अपना ज्ञान हो जाता है। इस देहाभिमान का त्याग करके वह अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है। साधक आत्मज्ञान की व ज्ञान तत्व की साधना में जितना डूबता जाता है उतनी ही ज्ञान की प्यास उसकी और ज्यादा बढ़ती जाती है । ऐसे ज्ञान के पिपासु जीव के लिए भगवान शंकर गुरु के रूप में उस व्यक्ति के जीवन में आते हैं। शिव तत्व ही गुरु तत्व है वेद यही वर्णन करते हैं कि महादेव ही तीनों लोकों के गुरु हैं। पार्वती मैया द्वारा किए गए वचन भगवान शंकर को बहुत अच्छे लगे प्रश्न उमा के सहज सुहाई। उसके बाद भगवान शिव थोड़ा ध्यान में गए और फिर अपने मन को बाहर करके प्रसन्न होकर भगवान के पावन चरित्र का गुणगान करने लगे।
शिव तत्व को जानने का अधिकारी जीव शंकालु ना हो दैन्य भाव से युक्त होकर भगवान के शरणागति हो तो ऐसे व्यक्ति के समक्ष किसी संत को गुरु रूप में ले आती है। साधना यही है कि निरंतर अपनी पात्रता को सवारते रहे, सुधारते रहें, संभालते रहे जब यह पात्रता आएगी तब भगवान आपका गुरु रूप में वरण कर लेते हैं। व्यासपीठ पूजन सुधा सिंघल, मोतीराज सिंघल ने किया। सुरेश चन्द्र गोविल, आभा गोविल, प्रियांक सिंघल उपस्थित रहे।

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