अनम शेरवानी
नित्य संदेश, मेरठ। स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के सरदार पटेल सुभारती इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ में पंथ निरपेक्षता एवं समान नागरिक संहिता विषय पर एक सामूहिक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस विचार गोष्ठी का आयोजन सुभारती लॉ कॉलेज के निदेशक राजेश चन्द्रा (पूर्व न्यायमूर्ति, उच्च न्यायालय उ.प्र.) तथा संकायाध्यक्ष प्रो. डा. वैभव गोयल भारतीय के संरक्षण में डा. प्रेमचन्द्र द्वारा किया गया। इस विचार गोष्ठी में लॉ कॉलेज के समस्त अध्यापकों ने प्रतिभाग किया तथा अपने विचार प्रस्तुत किए। न्यायमूर्ति राजेश चन्द्रा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्णयों द्वारा यह पूरी तरह से स्थापित नियम है कि धर्मनिरपेक्षता संविधान के मौलिक ढांचे का भाग हैं, जिसको बदलना भारतीय लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा।
संकायाध्यक्ष प्रो. डा. वैभव गोयल भारतीय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा
कि यदि संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद एवं धर्मनिरपेक्षता शब्दों को हटाया जाता
हैं, तो संविधान का अनुच्छेद
44 जो कि समान नागरिक
संहिता की बात करता हैं, उसे भी हटाया जाना
चाहिए। प्रो. डा. रीना बिश्नोई
ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ये दोनों शब्द आपातकाल लागू होने के बाद संविधान
की प्रस्तावना में जोड़े गए, अतः आपातकाल जैसे
परिस्थितियों की पुनरावृत्ति न हो इसलिए समाजवाद एवं धर्म निरपेक्षता शब्दों को
संविधान की प्रस्तावना से नहीं हटाना चाहिए। डॉ. सारिका त्यागी ने
कहा कि धर्म निरपेक्षता एवं समाजवाद एक विचार हैं, दोनों को अलग नहीं किया
नहीं सकता हैं।
शिवानी ने कहा कि दोनों शब्दों को हटाने से पहले भारतीय जन मानस की मनःस्थिति
को भी समझना होगा। शालिनी गोयल ने कहा कि यदि ये दोनों शब्द हटा दिये जाते हैं, तो उसके बाद क्या होगा? ये भी हमें सोचना होगा।
आशुतोष देशवाल का मानना हैं कि ये दोनों शब्द एक समतावादी और सभ्य समाज की स्थापना
करने पर जोर देते हैं। हर्षित ने दोनों शब्दों को ऐसे ही रहने देना चाहिए पर जोर
दिया। सभी वक्ताओं ने यह विचार समाजवाद की अवधारणा संविधान की मौलिक संरचना का भाग
हैं।
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