सपना सीपी साहू
नित्य संदेश, इंदौर। स्मार्ट सिटी की पहचान बना इंदौर एक बार फिर अपने नगर निगम की कार्यप्रणाली को लेकर जनता के गुस्से का केंद्र बन गया है। संपत्ति कर को लेकर पिछले एक साल से जो उथल-पुथल मची हुई है, उसने आम नागरिकों की नींद उड़ा दी है। कर दरों में गुपचुप बढ़ोतरी, गड़बड़ खाते, ऑनलाइन पेमेंट की विफलता और अधिकारियों की चुप्पी — एमपी ई नगर पालिका पोर्टल में हुई गड़बड़ियां। इन सभी कारणों ने मिलकर शहर के भरोसे को गहरा झटका दिया है।
24-25 में बढ़े कर दर, लेकिन लागू कर दिया गया पुराने वर्ष से
नगर निगम द्वारा वर्ष 2024-25 में 531 कॉलोनियों में कर दरों में 12% से 63% तक की बढ़ोतरी कर दी गई, वहीं 150 से अधिक कॉलोनियों के जोन बदल दिए गए। लेकिन सबसे हैरान कर देने वाली बात यह रही कि नए स्लैब के अनुसार कर की गणना पुराने वर्ष 2023-24 पर ही कर दी गई, जिसके कारण पहले से कर चुका नागरिक अब दोबारा भुगतान करने को मजबूर हो गया।
भुगतान किया लेकिन खाता खाली’ — कंप्यूटर की रसीद, मगर सिस्टम में एंट्री नहीं
कई संपत्ति धारकों ने बताया कि उन्होंने समय पर कर का भुगतान किया, रसीद उनके पास है, लेकिन निगम के पोर्टल में वह एंट्री दिखाई ही नहीं दे रही। अब निगम उन्हीं से दोबारा कर राशि वसूली कर रहा है — वह भी पेनल्टी समेत! ऐसे में नागरिकों को चक्कर पर चक्कर लगाने पड़ रहे हैं और कई जगहों पर रिश्वत के भी आरोप लगे हैं।
हैकिंग के नाम पर खातों की ‘गायब’ बाजी — एमपी ई नगर पालिका पोर्टल -तीन साल बाद भी कार्रवाई शून्य
तीन साल पहले हुई साइबर हैकिंग में इंदौर सहित प्रदेश की कई बड़ी नगर निगमों के लाखों खातों का डाटा गायब हो गया था। इंदौर के लगभग 1.75 लाख संपत्ति धारकों के खाते या तो गड़बड़ा गए या पूरी तरह मिटा दिए गए। इसके बावजूद न तो डाटा रिकवर किया गया, न ही जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई हुई। सवाल ये है कि एमपी ई नगर पालिका पोर्टल को सँभालने वाली कंपनी हर महीने 90 करोड़ कमा रही थी , वो अब तक चुप क्यों है? जबकि मामले में FIR भी दर्ज हो चुकी हे !
सोलर पैनल और टीन शेड पर भी कर — जनता को पर्यावरण के लिए मिली सजा?
जहां एक ओर केंद्र और राज्य सरकारें अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने की बात करती हैं, वहीं इंदौर नगर निगम ने सोलर पैनल को भी एक मंज़िल की तरह टैक्स की श्रेणी में रख दिया है। वहीं, कपड़े सुखाने या बारिश से बचाव के लिए लगाए गए टीन शेड पर भी कर वसूली की जा रही है। कई नागरिकों ने बताया कि 3 मंज़िल का कर ₹4000 से बढ़कर ₹5500 कर दिया गया, वह भी बिना पूर्व सूचना के।
निवासी मकान पर किरायेदार जैसा टैक्स — न सुनवाई, न समाधान
जिन मकानों में मालिक स्वयं निवास कर रहे हैं, उन पर भी किरायेदार वाला टैक्स लगाकर वसूली की जा रही है। कई नागरिकों ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई, लेकिन निगम के अधिकारी सुनने को तैयार नहीं।
जनवरी से दिसंबर तक ही वित्तीय वर्ष — क्यों नहीं बदला अब तक नियम?
देशभर में जहाँ वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च तक होता है, वहीं इंदौर नगर निगम आज भी जनवरी से दिसंबर तक का हिसाब-किताब ही मानता है। यही कारण है कि अगर कोई छूट या रियायत चाहिए तो आपको इसी अवधि में भुगतान करना होगा, अन्यथा पेनल्टी भरनी पड़ेगी।
ऑनलाइन भुगतान बना मुसीबत — पैसा कटा, रसीद नहीं
हालांकि निगम बार-बार ऑनलाइन भुगतान को बढ़ावा देता है, लेकिन असल में यह सुविधा भी जनता के लिए सिरदर्द बन चुकी है। नागरिकों ने बताया कि खाते से पैसे कट गए लेकिन महीनों तक वह राशि निगम के पोर्टल पर नहीं दिखी।
चुप्पी साधे जिम्मेदार अधिकारी — जनता से कोई संवाद नहीं
जब इस मामले पर नगर निगम के राजस्व प्रभारी राजेन्द्र राठौर और अपर आयुक्त नरेंद्र नाथ पांडेय से संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने फोन उठाना तक जरूरी नहीं समझा। वहीं, पूर्व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि "इस प्रकार की गड़बड़ी अगर जानबूझकर की गई हो, तो यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है और कानूनन दंडनीय है।"
डिजिटल इंडिया की बातें और ज़मीनी हकीकत में फर्क
डिजिटल इंदौर का दावा करने वाली नगर निगम अब खुद अपनी कार्यप्रणाली में उलझती नजर आ रही है। जनता की मेहनत की कमाई से वसूले गए टैक्स का जवाबदेह प्रबंधन, पारदर्शिता और समयबद्ध समाधान देना अब निगम की जिम्मेदारी है। वरना वह दिन दूर नहीं जब "स्मार्ट सिटी" का तमगा सिर्फ एक जुमला बनकर रह जाएगा।
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