नित्य संदेश। भारतीय इतिहास में प्रतिष्ठित, महान विभूति, पुण्यश्लोका, प्रातः स्मरणीय देवी अहिल्या बाई होल्कर (1725-1795) ने अपने कार्यों से न केवल अतीत में नारी शक्ति को सर्वोच्च शिखर पर स्थापित किया, बल्कि वर्तमान में भी वे सभी नारियों के लिए प्रेरणा और आदर्श का स्रोत हैं। 18वीं सदी में, जब समाज में महिलाओं की स्थिति दयनीय थी और कई कुप्रथाएं व्याप्त थीं,
अहिल्या बाई होल्कर ने साम्राज्य की बागडोर संभाली और एक धर्मनिष्ठ, कुशल प्रशासिका तथा समाज सुधारक की भूमिका का निर्वहन किया। आज, जब कुछ नारियों की सोच स्वतंत्रता के नाम पर विकृत हो रही है, ऐसे में हर नारी को मातुश्री अहिल्या बाई के दिव्य गुणों से प्रेरणा लेनी चाहिए और स्वयं को "मैं भी अहिल्या" समझते हुए, उनके उच्च कार्यों का अनुसरण करना चाहिए। उनकी विरासत को अपनाते हुए हमें उनके जैसा धैर्य, साहस, नेतृत्व और समर्पण अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए।
लोकमाता व प्रेरक प्रशासिका
मातुश्री अहिल्या बाई के कार्यकलाप अत्यंत प्रेरणादायक रहे हैं। वे एक कुशल प्रशासिका थीं। पति खंडेराव और ससुर मल्हारराव की मृत्यु के बाद, अंतर्मन की गहन पीड़ा के बावजूद, एक स्त्री होते हुए भी उन्होंने होल्कर साम्राज्य की बागडोर संभाली। उन्होंने न केवल राज्य को सुदृढ़ किया, बल्कि प्रजा के हित में ऐसी नीतियां भी बनाईं, जिनसे समाज के सभी वर्गों, विशेषकर स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुआ। उनकी न्यायप्रियता के कारण ही वे जन-जन में लोकप्रिय हुईं और "लोकमाता" कहलाईं।
उनकी सोच पुराने समय तक में घरेलू नारी से ऊपर उठकर, आत्मनिर्भर नारी की थी। उन्होंने महेश्वर में साड़ी और कपड़े के हथकरघा उद्योग को नारियों के लिए स्थापित किया, जिससे वे आर्थिक रूप से सशक्त बन सकीं। उनकी दिखाई परिपाटी के कारण ही आज की नारी आत्मनिर्भरता से खुद को हर क्षेत्र में सक्षम साबित कर रही है, चाहे वह कॉर्पोरेट हो, राजनीति हो या सामाजिक कार्य।
शिक्षा, समझ व समाज सुधार की प्रेरक
अहिल्या बाई होल्कर के समाज सुधार और शिक्षा को बढ़ावा देने के कारण समाज में अभूतपूर्व जागृति आई। उन्होंने प्रमुख रूप से महिलाओं की शिक्षा को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने जनकल्याणकारी कार्यों के तहत पूरे भारत में मंदिरों, घाटों, कुओं और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया, जो सामाजिक एकता और समरसता के केंद्र बने। आज की स्त्री जब शिक्षा ग्रहण कर सामाजिक सुधार की दिशा में कदम बढ़ाती है, तो वह मातुश्री की उसी दूरदृष्टि को सजीव करती है।
महिला सशक्तीकरण की प्रेरक
महिला सशक्तीकरण के प्रतीक के रूप में मातुश्री का परिचय किसी से छिपा नहीं है। उस समय में, जब सती प्रथा जैसी कुरीतियां व्याप्त थीं और एक विधवा के लिए शासन कर पाना कठिन था, उन्होंने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ा। उन्होंने कुम्हेर की लड़ाई में कवच तक पहना, इंदौर की ओर आने वाले युद्धों को अपने विवेक से टाला, सेना का कुशल नेतृत्व किया और प्रजा के बीच एक निपुण शासिका का सम्मान पाया। आज की नारी जब अपने अधिकारों के लिए लड़ती है, बाधाओं को पार करती है और आत्मनिर्भर बनती है, तो वह गर्व से कह सकती है, "मैं भी अहिल्या।"
धर्म और संस्कृति की प्रेरक संरक्षिका
धर्म और संस्कृति के संरक्षण में देवी अहिल्या बाई होल्कर ने चारों धाम, बारह ज्योतिर्लिंग, विशेषतः काशी विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर, महाकालेश्वर मंदिर और अन्य धार्मिक स्थलों के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिस तरह लोग आदि शंकराचार्य जी को चार धाम के संस्थापक मानते हैं, उसी तरह मेरा मानना है कि वे शिवभक्तिन नारी के रूप में आदि शंकराचार्य का अवतार ही थीं। उनकी जैसी धर्मनिष्ठा, कर्तव्यपरायणता और संस्कृति के प्रति अगाध प्रेम आज की नारी को अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देता है।
"मैं भी अहिल्या" का वर्तमान संदर्भ में प्रेरक
आज की नारी को "मैं भी अहिल्या" बन हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाते रहना चाहिए। आज की नारियां धरती से चांद तक की दूरी तय कर चुकी हैं। वे शिक्षिका हैं, वैज्ञानिक हैं, उद्यमी हैं और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे घर-परिवार से लेकर समाज को अहिल्या बाई की तरह अपने निर्णयों से उन्नत कर सकती हैं। वे समाज के प्रति सजग हैं और चुनौतियों को अवसर में बदलना जानती हैं। उदाहरण के लिए, जिस तरह रानी अहिल्या बाई ने पुरुष-प्रधान समाज में शासन किया, उसी तरह आज की महिलाएं बोर्डरूम से लेकर खेतों तक नेतृत्व कर रही हैं। किरण मजूमदार-शॉ, इंद्रा नूयी, सुनीता विलियम जैसी अनेक महिलाएं इसका जीवंत उदाहरण हैं।
लोकमाता अहिल्या बाई ने सामाजिक बदलाव की दिशा में जिस तरह सामाजिक कुरीतियों जैसे महिला शिक्षा, बाल विवाह, दहेज प्रथा और लैंगिक असमानता के लिए आवाज उठाई, उसी तरह सावित्रीबाई फुले, लक्ष्मीबाई केलकर 'मौसी जी', मेधा पाटकर और मलाला यूसुफजई जैसी महिलाओं ने आज तक उसे कायम रखा है।
अहिल्या बाई ने अपने राज्य को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया। आज हम देख रहे हैं कि कई महिलाओं ने स्टार्टअप्स प्रारंभ किए हैं, स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आत्मनिर्भर हो रही हैं और आर्थिक, सामाजिक, न्यायिक स्वतंत्रता प्राप्त कर रही हैं।
बल्कि एक दृढ़ संकल्प
अंततः "मैं भी अहिल्या" मात्र एक वाक्य नहीं है, बल्कि एक दृढ़ संकल्प है। यह हर उस नारी की हृदय की पुकार है जो लोकमाता अहिल्या बाई के सद्चरित्र, साहस, बुद्धिमत्ता, सामाजिक उत्थान, आस्था और करुणा को अपने भीतर जीवित रखना चाहती है। अहिल्या बाई इतिहास का वह उदाहरण हैं जिन्होंने साबित कर दिया कि नारी शक्ति केवल शारीरिक बल से ही नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता, नैतिकता और समाज के प्रति समर्पण रखते हुए अमरत्व को प्राप्त कर सकती है। आज की नारी जब इस भावना को अपनाती है, तो वह न केवल अपने लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक नया इतिहास रच सकती है।
मैं शिव की मानस पुत्री मातुश्री का अनुसरण कर "मैं भी अहिल्या" बनूँगी, क्योंकि मैं सशक्त हूँ, मैं घर-समाज के लिए समर्पित हूँ और मैं ही गलत के बदलाव की वाहक हूँ।
जय माता अहिल्या, जय मां भारती, वंदे मातरम!
लेखिका
सपना सी.पी. साहू 'स्वप्निल'
इंदौर, मध्य प्रदेश
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