Sunday, May 11, 2025

आंतरिक शांति से ही वैश्विक शांति स्थापित होगी: प्रोफेसर असद रज़ा

नित्य संदेश ब्यूरो 
मेरठ। पंडित दीन दयाल उपाध्याय शोधपीठ, राजनीति विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय व भारतीय राजनीति विज्ञान परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “वैश्विक शांति एवं एकात्म मानवदर्शन : समकालीन परिप्रेक्ष्य” के द्वितीय दिवस के सत्रों का आयोजन चाणक्य सभागार, राजनीति विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में किया गया। 

उदघाटन सत्र की औपचारिक शुरुआत अनुसुइया नैन (सहायक आचार्य केंद्रीय विश्वविद्यालय, केरल) द्वारा अतिथि परिचय के साथ की गयी। उदघाटन सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर अनुपम शर्मा (आचार्य राजनीति विज्ञान एवं लोक प्रशासन विभाग), डॉ. हरिसिंह गौर (विश्वविद्यालय सागर, मध्य प्रदेश) ने की। इस दौरान विशिष्ट वक्ता डॉ. अजय कुमार सिंह (सहायक आचार्य, केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू) ने बताया कि पश्चिम के दर्शन के विपरीत भारत का दर्शन एकात्मता लिए हुए है। इसी के अनुरूप पंडित दीन दयाल उपाध्याय का एकात्म मानवदर्शन स्वार्थ से परे वैश्विक शांति का प्रबल पक्षधर है। इसी क्रम में विशिष्ट वक्ता प्रोफेसर असद रज़ा (करईकल कॉलेज पुडुचेरी) ने पंडित दीन दयाल उपाध्याय के चिंतन की उचित व्याख्या की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि आंतरिक शांति से ही वैश्विक शांति स्थापित होगी। इसके पश्चात विशिष्ट वक्ता प्रोफेसर जितेंद्र साहू (आचार्य राजनीति विज्ञान विभाग गौर बंगा विश्वविद्यालय मालदा, पश्चिम बंगाल) ने बताया कि वर्तमान अस्थिर व युद्धरत वैश्विक स्थिति में विश्व शांति की परिकल्पना भारतीय तत्वों व चिंतन के माध्यम से ही संभव है। इसके उपरांत बीज वक्ता प्रोफेसर जनक सिंह मीणा, आचार्य, गांधी विचार एवं शांति अध्ययन विभाग केंद्रीय विश्वविद्यालय, गुजरात ने संगोष्ठी के विषय को सामयिक रूप से अनुकूल बताया और कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम की भारतीय अवधारणा सिर्फ भारतीय शांति हेतु नहीं अपितु संपूर्ण विश्व की शांति हेतु परिकल्पित विचार है। दीन दयाल उपाध्याय जी का विचार भी इसी चिंतन का विस्तृतीकरण है। इसके पश्चात सत्र के सह अध्यक्ष प्रोफेसर सुनील महावर, आचार्य, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी, बिहार ने बताया कि पंडित जी के विचार गांधी जी के विचारों से साम्यता लिए हुए हैं उन्होंने बताया कि पश्चिम के विपरीत भारतीय चिंतन आत्मिक विकास पर बल देता है एवं इसी से ही संपूर्ण विकास व वैश्विक शांति स्थापित हो सकेगी। 
सत्र के अध्यक्षीय उद्वोधन में प्रोफेसर अनुपम शर्मा, आचार्य राजनीति विज्ञान एवं लोक प्रशासन विभाग, डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर मध्य प्रदेश ने स्वयं को इसी विभाग की छात्रा होने के पलों को याद करते हुए सुखद व गौरवान्वित अनुभव किया एवं बताया कि आज भारत बुद्ध, गांधी व दीन दयाल जी का देश है एवं उन्हीं की चिंतन धारा को आगे बढ़ाते हुए आज भारत अहं से वयं की धारणा को आगे बढ़ा रहा है। इस प्रकार द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र संपन्न हुआ। 
द्वितीय दिवस के द्वितीय सत्र की औपचारिक शुरुआत सुश्री आंचल चौहान, शोध छात्रा, राजनीति विज्ञान विभाग चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ द्वारा की गई। 

तत्पश्चात डॉ. भूपेंद्र प्रताप सिंह, सहायक आचार्य, राजनीति विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा सभा को अतिथियों का परिचय कराया गया एवं सुश्री इशिता पांडे जी, सहायक आचार्या, राजनीति विज्ञान विभाग चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा दो दिवसीय संगोष्ठी के छायाचित्रों को वीडियो प्रेजेंटेशन के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। इसी क्रम में रजत कोहली, शोध छात्र, राजनीति विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा दो दिवसीय संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इसके उपरांत संगोष्ठी के कुछ प्रतिभागियों यथा डॉ. नियाज़ अहमद अंसारी जी, डॉ. असद रजा जी, डॉ. के. कविता जी एवं प्रोफेसर मुकेश कुमार मिश्रा जी द्वारा संगोष्ठी से सम्बंधित अपने सुखद अनुभव एवं प्रतिपुष्टि व्यक्त की गई। 

कार्यक्रम में अब विशिष्ट वक्ता प्रोफेसर सोमा भौमिक, माननीय कुलपति विलियम कैरी विश्वविद्यालय, शिलांग मेघालय व उपाध्यक्ष भारतीय राजनीति विज्ञान परिषद् ने कहा कि भारत हमेशा से वैश्विक सामंजस्य हेतु प्रयासरत रहा है। हमारा चिंतन हमारे विचारों व हमारे आचरण में परिलक्षित होता है। इसी चिंतन का मूर्त रूप एकात्म मानवदर्शन न सिर्फ भारत अपितु संपूर्ण विश्व हेतु प्रेरणा स्रोत है। इसके उपरांत विशिष्ट वक्ता प्रोफेसर डी.रामाकृष्णन, संकाय अध्यक्ष कला एवं आचार्य राजनीति विज्ञान विभाग, मदुरई कामराज विश्वविद्यालय मदुरई ने कहा कि साहित्य ही संस्कृति का दर्पण है। अतः व्यक्तिगत एवं सामाजिक उन्नयन हेतु हमें अपने साहित्य का अध्ययन व संरक्षण करना चाहिए ताकि हम भारतीय चिंतन की सनातन परंपरा को आगे बढ़ाते रहे। इसके उपरांत विशिष्ट वक्ता प्रोफेसर ए.पी. पाढ़ी, माननीय पूर्व कुलपति बहरामपुर विश्वविद्यालय बहरामपुर, ओडिशा ने अपने वक्तव्य में सभी आयोजकों का धन्यवाद दिया एवं कहा कि विश्व इस समय अनेक आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक समस्याओं से ग्रस्त है। इन सबका स्थाई समाधान भारतीय चिंतन में है जिसके वाहक भारतीय वांग्मय से लेकर गांधी व दीन दयाल उपाध्याय हैं एवं यही चिंतन देश और वैश्विक शन्ति की स्थापना कर सकते हैं | 

इसके उपरांत प्रोफेसर रविन्द्र कुमार, पूर्व कुलपति चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ ने अध्यक्षीय उद्वोधन दिया एवं कहा कि भारत निरंतर विश्व व्यवस्था को केंद्रीय भूमिका में आ रहा है। भारत का चिंतन व ग्रन्थ हमेशा से वैश्विक शांति हेतु प्रयासरत रहे हैं। वर्तमान आवश्यकता है कि हम इस सनातन दर्शन यथा वैदिक विचार, महात्मा बुद्ध व पंडित जी के दर्शन को नित्य आगे बढ़ाएं। इस इस प्रकार भारत को स्वावलंबी बना कर विश्वगुरु बनाएं जिसमें सभी नागरिकों का सहयोग हो। उन्होंने कहा कि जब तक राजनीतिक व आर्थिक विचारों में सांस्कृतिक विचारों का समन्वय नहीं होगा तब तक सार्वभौमिक विकास संभव नहीं होगा। इसके उपरांत कार्यक्रम को समापन की ओर ले जाते हुए प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा, माननीय पूर्व कुलपति महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी बिहार व संकाय अध्यक्ष कला एवं विभागाध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा माननीया कुलपति महोदया, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ का आयोजन अनुमति प्रदान करने के लिए तथा सभी अतिथियों द्वारा संगोष्ठी में प्रतिभाग हेतु एवं इस संगोष्ठी आयोजन हेतु कार्यरत समस्त शोधार्थी व छात्र छात्राओं को धन्यवाद किया। 

तत्पश्चात राष्ट्रगान के साथ इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हुआ। इस दौरान डा० जयवीर सिंह, डा० सुषमा रामपाल, डा० भूपेन्द्र प्रताप सिंह, डा०देवेन्द्र कुमार, डा० मुनेश कुमार, डा० रवि पोसवाल, सुश्री इशिता पांडे, श्री पवन, गगन, रवीना, सचिन आदि मुख्य रूप से उपस्थित रहे।

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