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Monday, May 12, 2025

आपका लिवर आपकी सोच से कहीं ज़्यादा ध्यान मांगता है, लिवर डैमेज के खामोश संकेतों को न करें अनदेखा



नित्य संदेश ब्यूरो 
मेरठ: लिवर का स्वास्थ्य अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि यह अंग शरीर की कार्यप्रणाली को बनाए रखने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शरीर का सबसे बड़ा ठोस अंग होने के नाते, लिवर कुल शरीर के भार का लगभग 1–2% हिस्सा होता है और यह कई जीवन-रक्षक प्रक्रियाओं में शामिल रहता है। यह विषैले तत्वों को शरीर से बाहर निकालता है, मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करता है, पाचन को नियमित करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूती प्रदान करता है। हैरानी की बात है कि लिवर में खुद को पुनः उत्पन्न (रीजेनरेट) करने की अनोखी क्षमता होती है। हालांकि यह गुण लाभदायक है, लेकिन इसी कारण से लिवर डैमेज के शुरुआती संकेत अक्सर छुप जाते हैं। यही वजह है कि लिवर की बीमारियाँ धीरे-धीरे और चुपचाप बढ़ती हैं, और इनके लक्षण तब प्रकट होते हैं जब स्थिति काफी बिगड़ चुकी होती है।

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, वैशाली के लीवर ट्रांसप्लांट और बिलियरी साइंसेज, रोबोटिक सर्जरी, पीडियाट्रिक लीवर ट्रांसप्लांट विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर, डॉ. राजेश डे ने बताया कि “लिवर डैमेज के शुरुआती संकेत अक्सर बहुत सामान्य लगते हैं — जैसे लगातार थकान, भूख में कमी, हल्का अपच, या टांगों में मामूली सूजन। ये लक्षण मामूली लग सकते हैं, लेकिन समय के साथ ये गंभीर रूप ले सकते हैं, जैसे पीलिया (त्वचा और आंखों का पीला पड़ना), पेट में सूजन (ऐसाइटिस), मानसिक भ्रम (एनसेफेलोपैथी), या खून की उल्टी होना — जो एडवांस लिवर डिजीज का संकेत हैं। जब तक ये लक्षण नज़र आते हैं, तब तक लिवर को काफी नुकसान हो चुका होता है और इलाज मुश्किल हो जाता है। कुछ समूहों में लिवर रोगों का खतरा अधिक होता है। अत्यधिक शराब पीने वाले — भले ही वह केवल बीयर ही क्यों न हो — विशेष रूप से जोखिम में होते हैं। इसके अलावा, डायबिटीज़ और मोटापे से ग्रसित लोगों में भी लिवर से संबंधित समस्याएं विकसित होने की संभावना अधिक होती है, खासकर नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) के रूप में।

क्रॉनिक हेपेटाइटिस B या C से संक्रमित व्यक्तियों को भी लिवर इंफ्लेमेशन और सिरोसिस का खतरा बना रहता है। अमेरिका में हुई एक हालिया स्टडी में पाया गया कि डायबिटीज़ क्लीनिक में आने वाले लगभग 30% मरीजों में लिवर स्टिफनेस के संकेत पाए गए, जो ब्लड टेस्ट और इलास्टोग्राफी (लिवर की लोच को मापने वाली एक विशेष अल्ट्रासाउंड तकनीक) के ज़रिए सामने आए। लिवर की देखभाल के लिए समय पर जांच और रोकथाम बेहद ज़रूरी हैं। जिन लोगों को अधिक खतरा है, उन्हें नियमित रूप से लिवर फंक्शन की जांच करानी चाहिए। इसके लिए लिवर फंक्शन टेस्ट, प्लेटलेट काउंट और प्रोथ्रोम्बिन टाइम जैसे टेस्ट सुझाए जाते हैं, जो लिवर की कार्यक्षमता और ब्लड क्लॉटिंग की स्थिति का पता देते हैं। हालांकि इलास्टोग्राफी कम उपयोग में लाया जाता है, यह एक सुरक्षित और दर्दरहित जांच है जो लिवर में फाइब्रोसिस या स्कारिंग के शुरुआती संकेतों को पहचान सकती है और समय रहते इलाज की राह खोल सकती है।

डॉ. राजेश ने आगे बताया कि “अपने लिवर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए कुछ सरल लेकिन प्रभावशाली आदतें अपनानी चाहिए। शराब का सेवन सीमित करें या पूरी तरह से बंद करें। संतुलित आहार और नियमित शारीरिक गतिविधि के माध्यम से वजन नियंत्रित रखना बेहद आवश्यक है, खासकर डायबिटीज़ या मेटाबॉलिक डिसऑर्डर की प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों के लिए। हेपेटाइटिस B के लिए टीकाकरण और हेपेटाइटिस C का सही इलाज वायरस जनित लिवर डैमेज से सुरक्षा प्रदान करता है। फल, सब्जियां, साबुत अनाज और कम वसायुक्त खाद्य पदार्थों से भरपूर पोषणयुक्त आहार लिवर के साथ-साथ संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है।“

लिवर के स्वास्थ्य को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए। जागरूकता, समय पर मेडिकल जांच और जीवनशैली में उचित बदलाव के ज़रिए गंभीर लिवर रोगों की संभावना को काफी हद तक कम किया जा सकता है। लिवर की रक्षा करना सिर्फ जीवन को लंबा करने की बात नहीं है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने की दिशा में एक अहम कदम है।

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