नित्य संदेश। एक्यूट मायलॉइड ल्यूकेमिया (AML) एक ऐसी जानलेवा बीमारी है, जिसका अब तक कोई निश्चित और प्रभावी इलाज मौजूद नहीं है। यह बीमारी विशेष रूप से 15 से 35 वर्ष की आयु के युवाओं को अपनी चपेट में लेती है, और निदान के महज़ 2 से 3 महीनों के भीतर मृत्यु निश्चित मानी जाती है।
इस भयावह स्थिति के बावजूद, देश के विभिन्न तथाकथित "कैंसर अस्पताल" इस बीमारी के नाम पर लाखों रुपये वसूलते हैं, उम्मीद के नाम पर लूट की खुली छूट दी गई है। परिवार अपने बच्चों की जान बचाने के लिए जमीन-जायदाद तक बेच देते हैं, आर्थिक रूप से बर्बाद हो जाते हैं, लेकिन अंत में उन्हें एक शव मिलता है।
डॉ. अनिल नौसरान (नेशनल यूनाइटेड फ्रंट ऑफ डॉक्टर्स के संस्थापक) ने इस अमानवीय स्थिति पर गहरी चिंता जताते हुए कहा, "जब तक AML का निश्चित इलाज नहीं खोजा जाता, तब तक सरकार को इस बीमारी का इलाज पूरी तरह *निःशुल्क* करना चाहिए। एक परिवार की ज़िंदगी बचाने के चक्कर में पूरा परिवार खत्म हो जाता है—यह कैसा न्याय है? इस अंधी लूट पर सरकार को तुरंत संज्ञान लेना चाहिए।" उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर क्यों इन निजी अस्पतालों को मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाने की छूट दी गई है? और कब तक आमजन इस दोहरी मार, बीमारी और लूट का शिकार होता रहेगा?
मांग:
1. AML के इलाज को राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत पूर्णतः निःशुल्क किया जाए।
2. निजी अस्पतालों की AML इलाज शुल्क पर नियंत्रण हेतु नीति बनाई जाए।
3. पीड़ित परिवारों के लिए सरकारी वित्तीय सहायता की तत्काल व्यवस्था की जाए।
यह एक मानवीय संकट है, न कि सिर्फ़ एक स्वास्थ्य समस्या। सरकार से आग्रह है कि वह इस ओर तुरंत कदम उठाए और पीड़ित परिवारों को राहत प्रदान करे।
प्रस्तुति
डॉ. अनिल नौसरान
संस्थापक, नेशनल यूनाइटेड फ्रंट ऑफ डॉक्टर्स
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