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Wednesday, March 19, 2025

इश्क अंधा होता है या इंसान इश्क में अंधा हो जाता है!

 



नित्य संदेश। इश्क अंधा होता है या इंसान इश्क में अंधा हो जाता है, दोनों ही बातें अपने तरीके से सच हो सकती हैं। जब इंसान इश्क में पड़ता है, तो उसकी सोच, समझ और फैसले कई बार भावनाओं के आगे धुंधले पड़ जाते हैं। वो दुनिया को वैसे नहीं देखता, जैसे वो सच में है, ये इंसान का अंधापन है। वहीं, ये भी कहा जाता है कि इश्क खुद अंधा होता है, क्योंकि प्यार न तर्क देखता है, न जात-पात, न रूप-रंग। वो बस हो जाता है, बिना किसी नियम या शर्त के,  तो शायद सच ये है कि इश्क और इंसान, दोनों ही एक-दूसरे को अंधा बना देते हैं।



इश्क, अंधापन और इंसान ये तीन विषय है, जिस पर आज मैं बात करूंगा। इंसान जब इश्क में पड़ता है तो उसके सोचने की शक्ति खत्म हो जाती है, हालांकि इस बारे में मैं ऊपर बता चुका है, कि कैसे इश्क में आंखों वाला इंसान अंधा हो जाता है। “मुझे उड़ने दो”, “मेरी कहानी और शहनाज” ये नाम मेरे दो उपन्यासों के हैं, जिनमें मैंने इन्हीं तीन विषय पर लिखा है। मेरठ के ब्रहमपुरी में हुआ सौरभ हत्याकांड हमें सोचने पर विवश करता है, सौरभ ने मुस्कान से प्रेम किया और वह प्रेम जुनून की हद से ज्यादा था। अब मैं बात करूंगा प्रेम और जुनून की। हालांकि, मेरा ये लेख शब्दों में आपको उलझाए रखेगा, लेकिन जब इसका अंत होगा, तो आप सोचेंगे, इश्क की परिभाषा क्या है?

प्रेम और जुनून का रिश्ता गहरा और जटिल है, जैसे दो धागे जो एक-दूसरे में उलझे हों। प्रेम एक कोमल, शांत और आत्मिक एहसास है, जो किसी की खुशी और मौजूदगी में सुकून ढूंढता है। वहीं जुनून एक तीव्र, बेकाबू आग है, जो हर चीज़ को अपने रंग में रंग देना चाहता है। दोनों में फर्क है, लेकिन ये अक्सर एक-दूसरे के साथ चलते हैं, खासकर प्रेम के शुरुआती दौर में। प्रेम जब जुनून से मिलता है, तो वो एक ताकतवर अनुभव बन जाता है। ये वो वक्त होता है, जब इंसान अपने प्रिय के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है रात-रात भर जागना, दूरियाँ मिटाना, यहाँ तक कि खुद को भूल जाना।

साहित्य में ऐसी मिसालें भरी पड़ी हैं, जैसे लैला-मजनूँ की कहानी, जहाँ मजनूँ का प्रेम जुनून की हद तक पहुँच गया। ये जुनून प्रेम को और गहरा करता है, उसे एक मकसद देता है, लेकिन यही जुनून खतरनाक भी हो सकता है। जब प्रेम में जुनून हावी हो जाता है, तो वो स्वामित्व, जलन या नियंत्रण की चाह में बदल सकता है। ये वो बिंदु है जहाँ प्रेम अपने मूल स्वरूप से भटक जाता है।

कई बार ये हत्या जैसी चरम घटनाओं तक पहुँच जाता है, जैसा मैंने पहले बात की कि इश्क अंधा होता है या इंसान इश्क में अंधा हो जाता है मुस्कान ने सौरभ का कत्ल क्यों क्या? जबकि दोनों ने शादी इश्क करके की। परिजनों ने विरोध किया तो अपनी दुनिया अलग बसा ली। मैंने काफी लम्बे समय तक क्राइम पत्रकारिता की है, ऐसे अनेक मामले मेरे सामने आए, लेकिन ये घटना सबसे अलग इसलिए है, कि इसमें हैवानियत दिखती है। प्रेमी के साथ मिलकर पति के शरीर को टुकड़ों में बांट देना, ये इश्क नहीं हो सकता। तो फिर क्या यह जुनून है? प्रेमी साहिल को हासिल करने का।

ये त्रिकोणीय प्रेम कहानी है, मैं इसकी गहराई तक पहुंचा और मैंने पाया कि प्रेम में हत्या एक ऐसा विषय है जो इंसानी जज़्बातों की सबसे गहरी और अंधेरी परतों को छूता है। ये वो जगह है जहाँ प्रेम अपनी खूबसूरती से हटकर एक खौफनाक रूप ले गया। इसे समझने के लिए हमें प्रेम के दो चरम पहलुओं को देखना होगा जुनून और कब्ज़ा। सौरभ अपनी प्रेमिका पत्नी मुस्कान को खोना नहीं चाहता था, जबकि मुस्कान अपने प्रेमी साहिल को। इसे "पैशन किलिंग" कहा जा सकता है। ये प्रेम का वो रूप है जो अपने लिए सब कुछ चाहता है, यहाँ तक कि दूसरों की ज़िंदगी भी छीन लेता है, क्या ये सचमुच प्रेम है?

मेरा मानना है नहीं, प्रेम तो जीवन देता है, आज़ादी देता है, फिर वो हत्या कैसे कर सकता है? शायद ये प्रेम का विकृत रूप है मेरे ख्याल से प्रेम में हत्या तब होती है जब इंसान प्रेम के एहसास को खो देता है, उसकी मानसिक सोच दम तोड़ देती है। वह अंधा हो जाता है, दिमाग सोचने और समझने की शक्ति खो देता है।

हत्या के बाद उस पति सौरभ को टुकड़ों में बांट देना, जिससे मुस्कान ने इश्क करके विवाह किया था, क्या हकीकत में मुस्कान ने कभी सौरभ से इश्क किया था, मेरा मानना है नहीं, अगर इश्क होता तो उसको टुकड़ों में ना काटती, अगर इश्क होता तो अपने नए प्रेमी साहिल के साथ मसूरी घूमने ना जाती।

वास्तव में इश्क तो सौरभ करता था मुस्कान से, उसने उसके लिए अपना सब कुछ छोड़ दिया था। माता-पिता, घर, रिश्ते-नाते। बिना सोचे-समझे वह उस पर भरोसा करता, उसकी खामियों को नज़रअंदाज़ करता थाउसे ना समाज की परवाह थी और न नियमों की

दरअस्ल, सौरभ मुस्कान से तर्क से परे इश्क करता था, तभी वह धोखा खा गया। ये घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है, कि अगर इश्क है तो अपनी आंखों को खुला रखे।

लेखक

लियाकत मंसूरी

संपादक

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