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Friday, October 4, 2024

अर्थशास्त्र के सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी होते है: डॉ. देवयानी

 


अनम शेरवानी

नित्य संदेश, मेरठ। स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय के कला एवं समाज विज्ञान संकाय के तहत उदार लिबरल आर्ट्स और ह्यूमैनिटीज विभाग में विशेष अतिथि व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस व्याख्यान का मुख्य विषय अंतर्विषयक विषय के रूप में अर्थशास्त्र और इस अवसर पर प्रमुख वक्ता डॉ. देवयानी जो कि ग्रेटर नोएडा स्थित जीएनएएलएसएआर में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने अपने विचार साझा करते हुए सभी का ज्ञान वर्धन किया।



विभाग के प्रमुख डॉ. मनोज कुमार त्रिपाठी ने भी इस विषय पर अपने विचार साझा किए। इस अतिथि व्याख्यान का उद्देश्य छात्रों और संकाय सदस्यों को अर्थशास्त्र के अंतर्विषयक पहलुओं के प्रति जागरूक करना था। डॉ. देवयानी ने अर्थशास्त्र को एक समग्र दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि पारंपरिक रूप से अर्थशास्त्र को केवल आर्थिक नीतियों, व्यापार और बाजारों से जोड़ा जाता रहा है, लेकिन वर्तमान समय में इसकी पहुंच कहीं अधिक विस्तृत है। अर्थशास्त्र अब समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान, इतिहास और यहां तक कि पर्यावरण विज्ञान जैसे विषयों से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है। डॉ. देवयानी ने उदाहरणों के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि कैसे अर्थशास्त्र समाज के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने बताया कि किसी भी आर्थिक नीति का समाज पर केवल आर्थिक प्रभाव नहीं होता, बल्कि इसके सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी होते हैं। उन्होंने पर्यावरणीय अर्थशास्त्र, विकास अर्थशास्त्र, और स्वास्थ्य अर्थशास्त्र जैसे क्षेत्रों की चर्चा की, जो इस बात को रेखांकित करते हैं कि कैसे विभिन्न क्षेत्रों में अर्थशास्त्र का योगदान बढ़ता जा रहा है।

विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार त्रिपाठी ने कहा कि वर्तमान वैश्विक संदर्भ में अर्थशास्त्र का अंतर विषयक दृष्टिकोण न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आज की शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता भी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि छात्रों को केवल एक विषय तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि उन्हें विभिन्न विषयों के बीच संबंध स्थापित करने और व्यापक दृष्टिकोण से अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। डॉ. त्रिपाठी ने यह भी कहा कि अर्थशास्त्र का अध्ययन केवल आर्थिक समीकरणों और सिद्धांतों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसके सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभावों को भी समझना आवश्यक है।

इस कार्यक्रम में में डॉ. दुवेश कुमार, डॉ. नियति गर्ग, और डॉ. मोनिका मेहरोत्रा उपस्थित रहे। कार्यक्रम का समन्वयन डॉ. अमृता चौधरी द्वारा किया गया, जिन्होंने इसे सफलतापूर्वक संचालित किया और उपस्थित सभी जनों का आभार व्यक्त किया।

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