नित्य संदेश। दिवाली रोशनी और खुशियों का पर्व है। यह अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और नफरत पर प्रेम की विजय का प्रतीक है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से दिवाली का अर्थ केवल पटाखों की गूंज और धुएं के गुबार में कहीं खोता जा रहा है।
दिवाली का असली अर्थ
दीपक जलाना केवल घर को रोशन करना नहीं है, बल्कि मन और समाज में सकारात्मकता का प्रकाश फैलाना है। इसलिए, इस बार हम सब मिलकर “दीए जलाएं, पटाखे नहीं” का संकल्प लें।
पटाखों के दुष्प्रभाव
* पटाखों से निकलने वाला धुआं और शोर हमारे वातावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए घातक है।
* वायु प्रदूषण बढ़ता है जिससे सांस के मरीजों को गंभीर परेशानी होती है।
* हृदय के मरीजों में बेचैनी, रक्तचाप बढ़ना और हार्ट अटैक तक के मामले सामने आते हैं।
* ध्वनि प्रदूषण से बच्चे, बुजुर्ग और पशु-पक्षी सभी भयभीत होते हैं।
* हर वर्ष पटाखों के कारण सैकड़ों लोग जल जाते हैं, जिनमें अधिकतर बच्चे होते हैं।
यदि पटाखे जलाना ही हो, तो रखें ये सावधानियां
1. ढीले कपड़े न पहनें।
2. बच्चों को पटाखों से दूर रखें।
3. जानवरों और पक्षियों के पास पटाखे बिल्कुल न जलाएं।
4. घर में 2-3 बाल्टी पानी पहले से भरकर रखें।
5. यदि कोई जल जाए, तो जलने वाले हिस्से को तुरंत ठंडे पानी में डुबो दें और कम से कम 6–8 घंटे तक वहीं रखें। इससे फफोले नहीं बनेंगे।
6. अगर फफोले बन जाएं, तो उन्हें साफ (स्टेराइल) सिरिंज से पानी निकालें और झिल्ली को वहीं दबा दें।
7. कभी भी उस पर पट्टी न बांधें।
8. संक्रमण से बचने के लिए जलने के स्थान को साफ रखें और तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।
हमारी अपील
आइए, इस दिवाली को केवल
* प्रकाश, प्रेम और स्वच्छता का प्रतीक बनाएं।
* हर दीपक के साथ अपने मन के अंधकार को दूर करें,
* हर मुस्कान के साथ किसी के जीवन में उजाला भरें।
प्रस्तुति
प्रोफेसर (डॉ.) अनिल नौसरान
संस्थापक, साइक्लोमेड फिट इंडिया
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