-बोले व्यापारी: अतीक और
मुख्तार से बड़ा अपराधी हो गया कारोबारी वर्ग
नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। शास्त्री नगर सेंट्रल
मार्केट समेत कई स्थानों पर चल रही कार्रवाई ने व्यापारियों की आँखों में चिंता और
पीड़ा दोनों भर दी हैं। तीन दशक से अधिक समय तक दिन-रात मेहनत कर अपने परिवार और
कई अन्य परिवारों को रोजगार देने वाले व्यापारी आज खुद को लाचार महसूस कर रहे हैं।
किसी के लिए यह सिर्फ़ एक
इमारत का ध्वस्तीकरण है, लेकिन उन व्यापारियों के लिए यह उनके जीवन की पूँजी, उनकी
मेहनत और संघर्ष की गवाही थी। जिन्होंने बैंकों से लोन लेकर, 18-20 घंटे की मेहनत
कर व्यापार खड़ा किया, आज वही लोग अपने सपनों को मलबे में दबा हुआ देख रहे हैं। सवाल
उठता है कि आखिर व्यापारी ने ऐसा कौन-सा अपराध किया कि उसके सिर पर भी बुलडोज़र
चला दिया गया? क्या व्यापारी का संघर्ष और अपराधियों की करतूतें एक ही तराजू में
तोली जा सकती हैं? अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे अपराधियों पर चलने वाला
बुलडोज़र अगर व्यापारियों के रोज़गार पर भी चलने लगे, तो यह सिर्फ़ संपत्ति का
नहीं, बल्कि समाज की आर्थिक रीढ़ की हड्डी का ध्वंस है। व्यापारी वर्ग आज इस सोच
में डूबा है कि 30-35 वर्ष का संघर्ष, त्याग और श्रम आखिर किस दोष की सज़ा बन गया।
यह सिर्फ़ इमारतों का नहीं, विश्वास का भी ढहना है।
ध्वस्तीकरण नहीं, टूटे सपनों
को भी देखें
सपा के शिक्षक सभा की राष्ट्रीय
सचिव डॉ. अनीता पुंडीर ने कहा कि कभी जिन दुकानों की रौनक से बाज़ार जगमगाता
था, आज वहाँ सन्नाटा पसरा है। जिन हाथों से रोज़ी-रोटी चलती थी, अब वही हाथ असमंजस
में हैं। शटर गिरे तो सिर्फ़ लोहे की आवाज़ नहीं हुई, कई परिवारों की उम्मीदें भी
टूटीं। व्यापार खत्म हुआ, तो जैसे ज़िंदगी की रफ़्तार भी थम गई। हर दुकान के पीछे
एक सपना था, जो अब मलबे में दबा पड़ा है। इन दुकानदारों ने सिर्फ़ सामान नहीं बेचा
था, उन्होंने रिश्ते बनाए थे, ग्राहकों से, मोहल्ले से, इस शहर से। आज वही लोग
बेघर से हो गए हैं, जिनकी वजह से बाजारों में रौनक रहती थी। सरकारें आती-जाती हैं,
पर इस चुप्पी की गूंज कोई नहीं सुनता। रोज़गार का अंत सिर्फ़ पेट की भूख नहीं
जगाता, यह आत्मसम्मान को भी घायल करता है। अब वक्त है कि हम केवल ध्वस्तीकरण न
देखें, बल्कि उन टूटे सपनों को भी महसूस करें। क्योंकि जब व्यापारी टूटता है, तो
शहर की आत्मा भी थोड़ी मर जाती है।
न्याय की राहें लम्बी, कैसे
बचेगी और दुकानें
सपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष
अजय अधाना ने कहा कि न्याय की राहें लंबी हैं, पर भूख और बेबसी बहुत तेज़ दौड़ती
हैं। प्रशासन की कार्रवाई ने कानून तो दिखाया, पर करुणा छीन ली। जिनसे शहर की
पहचान थी, वही अब अपनी पहचान ढूँढ रहे हैं। सवाल यही उठता है आखिर व्यापारी का
अपराध क्या था? जिसने तीन दशक की मेहनत से न सिर्फ़ अपने परिवार को, बल्कि दूसरों
को भी रोज़गार दिया, उसे आज अपनी ही मेहनत का मलबा देखने की सज़ा क्यों मिली? जब
मेहनतकश की मेहनत मिटा दी जाती है, तो सिर्फ़ दीवारें नहीं, एक शहर का दिल भी ढह जाता
है।

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