-दिल्ली और लखनऊ में दौड़े
व्यापारी, फिर भी जमींदोज हो गई दुकानें
लियाकत मंसूरी
नित्य संदेश, मेरठ।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह तो तय था कि देर सवेर सेंट्रल मार्केट की
बिल्डिंग का धवस्टिकरण होगा, लेकिन जो डूब रहा होता है वो आख़री वक्त तक किनारे पर
पहुंचने की जद्दोजहद नहीं छोड़ता। ऐसा ही 661/6 बिल्डिंग के व्यापारी भी कर रहे
थे। उन्होंने कोई भी दर ऐसा नहीं छोड़ा, जहां रोटी रोजगार को बचाने के लिए कोशिश न
की हो। हर जगह से दिलासा ही मिला, दिलासा देने वालों में सिर्फ और सिर्फ भाजपा के
नेता ही नहीं, व्यापारी और अन्य पार्टी के नेता भी थे।
पीड़ित व्यापारियों की माने
तो कई ऐसे भी व्यापारी और नेता मिले, जो कहते थे कि जब तक वो हैं, तब तक सेंट्रल
मार्केट का महफूज है, ध्वस्त करना तो दूर की बात, कोई अफसर इसको छू तक नहीं सकता।
इसके लिए वो राजनीति की चाश्नी में डूबे हुए तमाम भरोसे इन व्यापारियों को दिलाया
करते थे। इन नेताओं में कुछ ऐसे भी थे, जो व्यापारियों को लेकर दिल्ली और लखनऊ में
मंत्रियों से मिलवाने भी पहुंचे। वहां से लौटकर मीडिया के सामने दावे किए गए कि
कुछ नहीं होगा। बिल्डिंग नहीं गिरेगी। फला मंत्री से बात हो गयी है.. सूबे के
सरकार के अमुक मंत्री ने कह दिया है कि सीएम से बात करेंगे। इस आदेश के खिलाफ अपील
दायर की जाएगी। ऐसे किसी को उजड़ने नहीं दिया जा सकता। ऐसे लच्छेदार आश्वासनों के
भरोसे बिल्डिंग के व्यापारी भी मुतमईन थे कि अब तो मंत्री ने भरोसा दे दिया है,
कुछ होने वाला नहीं। समय गुजरता गया और वक्त के गुजरने के साथ-साथ एक-एक रात इस
बिल्डिंग के व्यापारियों पर भी भारी गुजरती रही। ना दिन को चैन था, ना रात में
करार, बस एक ही बात जहन में रहती, कुछ ना हुआ तो क्या होगा? क्या बिल्डिंग को
गिरते हुए अपनी बर्बादी का तमाशा खुद देखना होगा, और फिर हुआ भी वैसा ही, शनिवार
का दिन इस बिल्डिंग के व्यापारियों पर बुरा गुजरा। आवास विकास और पुलिस प्रशासन के
अफसर लाव लश्कर के साथ बिल्डिंग को ध्वस्त करने पहुंच गए। ऐसे तमाम व्यापारी इस
बिल्डिंग के सामने मौजूद थे, जो अपनी बर्बादी का तमाशा देखने आए थे। फोर्स ने आते
ही उन्हें जब धकेलना शुरू किया तो आंखें भीग गई। ये वो वक्त था, जब उन्हें उनकी
जरूरत थी, जो बड़े-बड़े दावे किया करते थे कि कुछ नहीं होने देंगे, लेकिन उनके साथ
कोई नहीं था।
ध्वस्तीकरण के बाद धूल में
मिल गए सपनें
मेरठ की सड़कों पर आज अजीब
सा सन्नाटा है, लेकिन उस सन्नाटे में दर्द की चीखें दबी हुई हैं। जिन दीवारों ने
पीढ़ियों को पलते देखा था, वे आज धूल में मिल गईं। जिन दुकानों की रौनक से बाज़ार
चमकता था, वहाँ अब मलबा और मायूसी बिखरी है। रोते चेहरों पर सिर्फ़ आँसू नहीं,
बल्कि बिखरे सपनों की कहानी लिखी है। हर टूटी ईंट के नीचे किसी परिवार की उम्मीदें
दबी हैं। जिन हाथों ने बाज़ार सजाया, वही अब सिर पर हाथ रखे खड़े हैं। किसी का
भविष्य उजड़ गया है, तो किसी का बचपन मलबे में खो गया।
नेताओं ने नहीं उठाए
व्यापारियों के फोन
सेन्ट्रल मार्किट के व्यापारियों
ने बताया कि सिर्फ पूर्व विधायक लक्ष्मीकांत बाजपेयी को छोड़कर हमारे सहयोग में कोई
नहीं रहा, अंतिम समय में हमारे फोन तक नहीं उठे। कुछ ने तो अपने किसी सहयोगी को
फोन देकर ये कहलवा दिया कि वो बाहर है। संजीव अग्रवाल ने कहा है कि भाजपा का
प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व इस गंभीर स्थिति को तुरंत संज्ञान में ले।
व्यापारियों को राहत देने के उपाय हों, अन्यथा इससे न केवल आर्थिक, बल्कि राजनीतिक
रूप से भी बड़ा नुकसान हो सकता है।

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