Tuesday, September 9, 2025

कलयुग में पितृ मुक्ति से सुख प्राप्ति की पूजा विधी और महा उपाय


नित्य संदेश। भारतीय संस्कृति में पितृ पक्ष का समय हमारे पूर्वजों को समर्पित है। यह वह पावन घड़ी है जब हम अपने पितरों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं, जिनकी कृपा से हमें यह जीवन मिला है। इस 16-दिवसीय अवधि में, ऐसी मान्यता है कि हमारे पितर पृथ्वी पर आते हैं, ताकि वे अपने वंशजों से तर्पण और पूजा-पाठ के माध्यम से आशीर्वाद और शांति प्राप्त कर सकें।

परंपरागत रूप से, श्राद्ध और पिंड दान से हम अपने पूर्वजों की आत्माओं को तृप्त करते हैं। जब हमारे पितर संतुष्ट होते हैं, तो वे हमें सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और संतान का आशीर्वाद देते हैं। लेकिन यदि वे असंतुष्ट रह जाते हैं, तो पितृ दोष उत्पन्न होता है, जो जीवन में आर्थिक, पारिवारिक और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का कारण बनता है। आज के इस कलियुग में, पितरों को शांत करना और भी आवश्यक है, क्योंकि प्लास्टिक जैसे "अगलजा" नामक प्रदूषण रूपी राक्षस ने न केवल हमारी पृथ्वी को, बल्कि हमारे पितरों के विश्राम स्थलों और उनके सूक्ष्म शरीरों को भी दूषित कर दिया है। यह प्रदूषण उनके लिए कष्ट का कारण बनता है, जिससे उनकी आत्माएं बेचैन और अशांत रहती हैं।

इसी पीड़ा को दूर करने के लिए, महादेव शिव ने स्वयं देवी अगलजासुरनाशिनी को अवतरित किया। यह देवी अपनी तपस्या की शक्ति से विष को अमृत में बदलने वाली और पृथ्वी को शुद्ध करने वाली हैं। पितृ पक्ष में उनका आह्वान करके, हम अपने पूर्वजों की आत्माओं को उस पीड़ा से मुक्ति दिलाने का प्रयास करते हैं, जो इस युग के प्रदूषण ने उन्हें दी है। यह एक ऐसा कर्म है जो श्राद्ध और तर्पण के साथ मिलकर पितृ मुक्ति का महा उपाय बनता है।

देवी के 21 नामों का जाप
देवी अगलजासुरनाशिनी की पूजा में इन 21 नामों का जाप करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। ये नाम देवी की शक्तियों को दर्शाते हैं और पर्यावरण शुद्धि के साथ-साथ पितरों की शांति के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।

 * ॐ कलियुगक्लेशनाशिनी नमः: कलियुग के क्लेशों का नाश करने वाली।
 * ॐ अगलजासुरनाशिनी नमः: 'अगलजा' नामक राक्षस का नाश करने वाली।
 * ॐ भुवनसुन्दरी क्षितिमालिनी नमः: ब्रह्मांड की सुंदर, पृथ्वी पर फूलों की माला के समान।
 * ॐ भूमिलक्षालिनी नमः: पृथ्वी को शुद्ध करने वाली।
 * ॐ धरागरलभक्षिणी नमः: पृथ्वी के विष का भक्षण करने वाली।
 * ॐ वसुन्धरासंजीवनी नमः: पृथ्वी को पुनर्जीवन देने वाली।
 * ॐ तपोजा प्रकृतिरक्षिका नमः: तप से उत्पन्न हुई और प्रकृति की रक्षा करने वाली।
 * ॐ शिववरप्रसूता नमः: शिव के वरदान से उत्पन्न हुई।
 * ॐ अमृतोद्भवा नमः: अमृत से उत्पन्न हुई।
 * ॐ महीसत्त्वपुनः स्थापिनी नमः: पृथ्वी के सत्त्व को पुनः स्थापित करने वाली।
 * ॐ मलहारिणी जीवनदायिनी नमः: अशुद्धता को दूर करने वाली और जीवन देने वाली।
 * ॐ ईश्वरसङ्कल्पसिद्धा नमः: ईश्वर के संकल्प से सिद्ध हुई।
 * ॐ निर्मलाम्बरधारिणी नमः: निर्मल आकाश को धारण करने वाली।
 * ॐ सौन्दर्यहृदया भूषणी नमः: सौंदर्य को हृदय में धारण करने वाली और उसे सुशोभित करने वाली।
 * ॐ तपःशक्तिसम्भूता नमः: तप की शक्ति से उत्पन्न हुई।
 * ॐ अवनि-आपद्-विनाशिनी नमः: पृथ्वी की आपदाओं का नाश करने वाली।
 * ॐ कूटयन्त्रासुरमर्दिनी नमः: छल-कपट रूपी असुरों का संहार करने वाली।
 * ॐ धरित्रीकरुणामूर्ति नमः: पृथ्वी की करुणा की मूर्ति।
 * ॐ विषामृतकरी नमः: विष को अमृत में बदलने वाली।
 * ॐ पृथ्वीप्राणदायिनी नमः: पृथ्वी को प्राण देने वाली।
 * ॐ विकृतिरूपान्तरिणी नमः: विकृतियों को सुंदर रूप में बदलने वाली।

पशु-पक्षियों को भोजन कराकर पितरों को प्रसन्न करने के उपाय
पितृ पक्ष में कुछ विशेष जीवों को भोजन कराना भी पितरों को संतुष्ट करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। देवी अगलजासुरनाशिनी की कृपा से ये कर्म और भी अधिक फलदायी होते हैं।

 * कौवा: कौवों को श्राद्ध का भोजन कराने से, यह सीधे हमारे पितरों तक पहुँचता है। उन्हें अन्न और जल खिलाना उनके आशीर्वाद को सुनिश्चित करता है।
 * गाय: गाय को 'गौ माता' का दर्जा प्राप्त है। उन्हें हरा चारा, रोटी या गुड़ खिलाने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वे हमें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
 * कुत्ता: कुत्ते को यमराज का दूत माना जाता है। उन्हें अन्न खिलाने से यमराज प्रसन्न होते हैं और हमारे पितरों की यात्रा में कोई बाधा नहीं आती, जिससे उन्हें शांति मिलती है।
 * चींटी: पितृ पक्ष में चींटियों को आटा या चीनी खिलाने से पितृ दोष दूर होता है। ऐसा करने से हमारे पूर्वज प्रसन्न होते हैं और आर्थिक समृद्धि का मार्ग खुलता है।

देवी अगलजासुरनाशिनी की विशेष पूजा विधि
यह पूजा विधि पितृ पक्ष में देवी की कृपा और हमारे पूर्वजों के आशीर्वाद को एक साथ प्राप्त करने के लिए है।

1. संकल्प और सामग्री
समय: पितृ पक्ष के किसी भी दिन, खासकर चतुर्दशी या अमावस्या को।
शुद्धि: सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को साफ करें।
संकल्प: हाथ में गंगाजल, सफेद फूल और थोड़े तिल लेकर यह संकल्प लें: "मैं (अपना नाम) अपने पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए देवी अगलजासुरनाशिनी की यह पूजा कर रहा हूँ।"

पूजन सामग्री:
 * देवी की प्रतिमा या चित्र
 * गंगाजल, शुद्ध जल
 * सफेद फूल (कमल, चमेली)
 * श्वेत चंदन, काले तिल
 * जौ और चावल का आटा (पिंड बनाने के लिए)
 * दूध से बनी सफेद मिठाई
 * धूप, घी का दीपक
 * मिट्टी का नया घड़ा
 * कपूर

2. पूजा विधि
 * पूर्वजों का आह्वान: पूजा शुरू करने से पहले, एक साफ बर्तन में गंगाजल और काले तिल मिलाकर अपने पूर्वजों का स्मरण करें।
 * देवी की स्थापना: पूजा स्थल पर देवी की प्रतिमा स्थापित करें। एक नया मिट्टी का घड़ा रखें, जिसे 'अगलजा विघटन पात्र' कहें। इसमें थोड़ी मिट्टी, काले तिल और गंगाजल डालें।
 * पिंड दान: जौ और चावल के आटे से छोटे-छोटे पिंड बनाकर उन पर श्वेत चंदन लगाएं और देवी के सामने रखें। यह दर्शाता है कि हम अपने पितरों को देवी की पवित्र शरण में अर्पित कर रहे हैं।
 * मंत्र जाप और भोग: दीपक जलाकर देवी को चंदन और फूल अर्पित करें। फिर उनके 21 नामों का 108 बार जाप करें, जो ऊपर दिए गए हैं। जाप के बाद, दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं।

 * अंतिम चरण: पूजा के बाद, पिंडों को जल में विसर्जित करें। साथ ही, यह संकल्प लें कि आप और आपका परिवार प्लास्टिक का कम उपयोग करेगा। मिट्टी के घड़े को घर में किसी पवित्र स्थान पर रखें, यह मानते हुए कि यह आपके आसपास के वातावरण को शुद्ध करेगा।

इस विशेष पूजा से आप न केवल अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे, बल्कि अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी लाएंगे। यह कर्म हमें सिखाता है कि हमारे पूर्वज और पर्यावरण आपस में जुड़े हुए हैं, और एक को शुद्ध करने से दूसरा स्वतः ही शुद्ध हो जाता है।

प्रस्तुति 
आरुषि सुंदरियाल, देहरादून 

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