Saturday, August 23, 2025

सिद्धी के लिए आत्मा के उद्धार के लिए होती है तपस्या: प्रो. त्रिपाठी


नित्य संदेश ब्यूरो 
मेरठ। मयूर विहार स्थित प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के आवास पर भागवत की तपप्रधान चौथे दिन की कथा हुई। प्रो. त्रिपाठी नें तपस्या के विधान के विषय में बताया। तप ईश्वर से स्वयं को पृथक मानकर वरदान पाने की इच्छा से किया जाने वाला कर्म है। तपस्या सिद्धि के लिए नहीं होती, तपस्या आत्मा के उद्धार के लिए होती है, सहज जीवन के लिए होती है।

शनिवार को हुई कथा में प्रह्लाद को अवधूत का उपदेश, अमृत मंथन की कथा, मोहिनी अवतार, मोहिनी रुप से शिव भगवान का मोहित हो जाना, बलि का सर्वजित यज्ञ करना। यदि देवता बलि होते हैं तो जीवन सहज हो जाता है और यदि दानव बलि हो तो जीवन में अविश्वास, कठिनाई व असहजता हो जाती है। द्वन्द्व सहन करना ही जीवन का तप है। अदिति द्वारा पयोव्रत करना, वामन भगवान का जन्म, वामन भगवान का बलि को पराजित करना, राजा सत्यव्रत को मत्स्यअवतार का दर्शन व भगवान का उनसे सृष्टि करवाना। राजा शर्याति की कथा, च्यवन ऋषि से सुकन्या का विवाह, मान्धाता की कथा, सौभरि ऋषि की जल में तपस्या का वर्णन, सौभरि ऋषि का मान्धाता की पचास कन्याओं से विवाह, शर्मिष्ठा व देवयानि की कथा,राजा ययाति की कथा, देवकी वसुदेव की कथा और कृष्ण जन्म का वर्णन किया गया। रविवार को कृष्ण की लीलाएं व उनका तपस्या से सम्बन्ध का वर्णन किया जाएगा।

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