नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। प्रो. सुधाकराचार्य
त्रिपाठी के आवास पर भागवत की तीसरे दिन की व्रतकथा हुई। प्रो. त्रिपाठी ने व्रत की
चर्या के विषय में बताया। आहार, निद्रा, भय और मैथुन सारे मनुष्यों और पशुओं में समान
है। देश, काल, नियम व वृत्ति इन चार चीजों के होने पर व्रत बनता है।
बताया कि व्रत करता हुआ व्यक्ति यदि गलत आचरण करता है तो वह मृत्यु पश्चात नरक सेवन करता है। इसके अतिरिक्त विष्णु भगवान की माया से पार पाने के मंत्र का उल्लेख, कश्यप द्वारा दिति को पुंसवन व्रत का उपदेश, इन्द्र द्वारा दिति की सेवा व उनका गर्भनाश, व्रत्र की कथा, हिरण्यकशिपु की तपस्या, समुद्र मंथन की कथा व व्रत धारण की विधि का वर्णन हुआ। देश, काल, नियम व वृत्ति इन चार के होने पर व्रत बनता है।
मधुव्रत अर्थात् भंवरे की तरह कभी कम, कभी
ज्यादा, जो भी मिल जाये उसी में सन्तोष करना चाहिए। पांच प्रकार के अधर्म होने पर व्रत
का पारण कर त्याग कर देना चाहिए। एकादशी के व्रत विधान का वर्णन किया गया। विधि निषेध
में व्रत के समय असत्य का वाचन, बाल बनाना, नाखून व मुख पर रंग लगाना, विकल्प ना होना
व जगते हुये सोना और दिन में नहीं सोना चाहिए। इन सबसे व्रत में बाधा होती है। मंगलवार
की कथा में पयोव्रत, सत्यव्रत, द्वादशी व्रत, प्रण और क्रतु (लम्बा चलने वाला व्रत)
का वर्णन होगा।
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