नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। शुक्रवार को मयूर विहार स्थित प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के आवास पर भागवत की सातवें दिन की व्रतकथा हुई। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि भागवत धर्म क्या है? भागवत धर्म के नौ लक्षण हैं, जिनको नवधा लक्षण भी कहा जाता है। वासुदेव के नारद से भागवत धर्म के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने ऋषभपुत्रों द्वारा निमि को दिए गए भागवत धर्म के उपदेशों का वर्णन किया।
जो अपने में सबको और सबमें अपने को देखता है, वह भागवत है। यह माया क्या है? अंतरिक्ष बोले कि जितनी भी सृष्टि है और जितनी प्रलय है, यही भगवान की माया है। इसको पार करने का क्या उपाय है? प्रबुद्ध ने बताया कि जैसा चल रहा है वैसा चलने दें, सहज ढंग से सब कुछ चलने देना चाहिए। यही माया को पार करने का उपाय है। सहज ढंग से कार्य होना ईश्वर की इच्छा है। व्रतमय जीवन ही सहज जीवन है। जो व्यक्ति नियति और पौरुष में से नियति को बल देता है, अविरोध की स्थिति में रहता है, यह भागवत धर्म का लक्षण है। नारायण कौन हैं, स्थिति, हेतु और प्रलय इन सबमें जो व्याप्त है वो नारायण हैं। स्वप्न, जागृत और निद्रा इन सबमें वो एक हैं। आत्मा ना जन्म लेती है ना मरती है।
प्रो. त्रिपाठी ने बताया
कि व्रत का मूल स्वरुप है कि इन्द्रियां, मन, बुद्धि और अहंकार का आपस में तालमेल रहे।
इस संसार में रमने की इच्छा ही बंधन है व इससे पार जाने की इच्छा ही व्रत है। नहीं
तो लोक व्यापार है। अविरोध का जीवन व्रत का जीवन है। किसी का भी विरोध करने का अर्थ
है, भगवान का विरोध करना। यही माया है क्योंकि सारी सृष्टि ईश्वर की रचना है।
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