नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। शनिवार को प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के आवास पर भागवत
में व्रतकथा का प्रारम्भ हुआ। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि भागवत में अवतारों की
कथाओं के अतिरिक्त चार कथाएं महत्त्वपूर्ण हैं, ऋषिकथा, तीर्थकथा, व्रतकथा और तपकथा।
व्रत क्या है? इसका उत्तर भागवत पुराण से बढ़ कर कहीं नहीं मिलता। परीक्षित
ने जब गङ्गा में प्रायोपवेशन किया, तब शुकदेव ने व्रत का
उपदेश दिया, जिसे ऋषियों ने तट पर बैठकर
सुना। व्रत क्या है? उसका अर्थ क्या है? उसके कितने रूप हैं? उसका विधान और पारायण आदि के विषय में बताया। व्रत के लिए 5-6 शब्दों का प्रयोग किया गया है, सत्र, व्रत, तप, अनुव्रत और चर्या। ये सब व्रत के
स्वरूप का निर्धारण करते हैं। व्रत का अर्थ है, जहाँ मन
व्रजन करे। लताओं की तरह विकसित हो। क्रम बना रहे। संकल्प हो। यदि संकल्प छोटा हो
तो व्रत, लम्बा हो तो तप और अधिक लम्बा
हो तो सत्र होता है। त्रिपाठी जी ने अस्कन्दित व्रत, सत्रवर्धन, देवव्रत आदि की कथाओं को
सुनाया। व्रतस्नान के महत्त्व को समझाया। पतिव्रता और अनुव्रता के अर्थ को स्पष्ट
किया। रविवार की कथा
में व्रत की चर्या, क्रिया, वृत्ति, प्रकार आदि के विषय में विशेष रूप से कर्मनिर्हार की चर्चा होगी।
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