Saturday, June 14, 2025

बिन तेरे भला कैसे जी पाऊँगी?


नित्य संदेश।
मैं बीमार हूँ, मरी थोड़ी हूँ,
जो तुमको भूल जाऊँगी।
धड़कनों में तू बसा है,
कैसे तुझको बिसराऊँगी?

दर्द है जिस्म में, रूह में नहीं,
कमज़ोरी मेरे ज़ुबाँ में नहीं।
तेरी यादों से ही तो मिलती है ताक़त,
बिन तेरे भला कैसे जी पाऊँगी?

माना कि बिस्तर पे हूँ आज पड़ी,
पर हिम्मत अभी हारी नहीं।
तेरा नाम लेकर ही तो साँसें चलती हैं,
इसी नाम से फिर उठ खड़ी हो जाऊँगी।

सपना साहू

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