नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। ऋषि वही जो न डरे,
न डराए। प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी ने अभयमन्त्र के साथ कथा का प्रारम्भ किया। बताया
कि भागवत के प्रथम स्कन्ध से सप्तम स्कन्ध तक शुकदेव ने परीक्षित को अभय के विषय में
ही बताया।
तक्षक भय का ही रूप है।
बुधवार को सबसे पहले ऋषि गय की कथा हुई, वह भरत की तीसरी पीढी में राजा हुए। फल्गु
नदी पर स्थित गया नगर में अब गदाधारी विष्णु के निमित्त पूर्वजों का पिण्डदान दिया
जाता है। गय ऋषि आज भी विद्यमान हैं। उसके बाद नर - नारायण ऋषि की कथा हुई, जो आज भी
पर्वत रूप में मौजूद हैं और यमनोत्री, माणा ग्राम, केदारनाथ और बदरीनाथ का मार्ग हैं।
नरक नामक ऋषि का भी उल्लेख हुआ। अजामिल ऋषि की कथा से नाम-जप के महत्त्व को बताया।
ऋषि स्वयंभू, प्रचेता और मारिषा की कथा से पेड़ों का महत्त्व और पर्यावरण की सुरक्षा
का सन्देश दिया। नारायण कवच देने वाले ऋषि विश्वरूप, वृत्र के वध के लिए अपनी अस्थियां
देने वाले दधीचि की कथा हुई। कश्यप-अदिति, हिरण्यकशिपु, प्रह्लाद, त्रिपुर, गजेन्द्र
और ग्राह की कथा से शिक्षा मिलती है कि प्राण केवल नारायण ही बचा सकते हैं और कोई नहीं।
गुरुवार को बलि-वामन, सप्तर्षि, अदितिवामनपयोव्रत, च्यवन, सत्यव्रत, अम्बरीष और मान्धाता
आदि की कथा होगी।
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