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Monday, June 30, 2025

युद्धविराम नज़ाकत भरा फैसला


नित्य संदेश। सरकार और सेना के द्वारा व्यापक विचार विमर्श और मंथन के बाद 07 मई की रात ऑपरेशन सिंदूर के माध्यम से आतंक परस्त पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया गया लेकिन 10 मई को जिस तरह से निर्णायक बढ़त और प्रभावी दवाब के बाद भी महज कुछ घंटों के भीतर आनन फानन में युद्ध विराम की घोषणा हुई सरकार के घोर प्रशंसक भी चकित रह गए। सरकार के अचानक लिए गए इस निर्णय पर उंगली उठाने में जरा भी देर नही हुई। यहां तक कि भूतपूर्व सेनाध्यक्षों और सेवा निवृत्त वरिष्ठ सेना अधिकारियों ने भी सरकार के फैसले की तीव्र आलोचना की। सरकार द्वारा लिए गए युद्धविराम के इस अप्रत्याशित निर्णय में आग में घी डालने का काम किया अमेरिका के सनकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का युद्धविराम की घोषणा से ठीक पहले इसे लेकर किया गया ट्वीट जो कि अपनी वीजा नीतियों और टैरिफ टेरर को लेकर पहले से ही भारत के निशाने पर थे। 
राष्ट्रवाद के मुद्दे से सत्ता के सिंहासन पर विराजमान सरकार को पहली बार आलोचना का सामना करना पड़ा। स्थिति को भांपते हुए देश के प्रधानमंत्री एक दफा फिर रात के आठ बजे जनता को सम्बोधित कर देश के लोगों में उपज रहे संशयों और संदेहों का न केवल पटाक्षेप किया बल्कि आवाम को यह भरोसा दिलाने में भी कामयाब रहे कि सरकार द्वारा लिया गया युद्धविराम का निर्णय हाल फिलहाल के लिए सही था। प्रधानमंत्री के संबोधन से यह भी स्पष्ट हुआ कि आपरेशन सिंदूर आतंकवाद के खिलाफ भारत की जीरो टॉलरेंस की नीति का प्रतीक है जिसका मकसद पाक अधिकृत काश्मीर पर नियंत्रण करना कतई नही था। 
अब जो सबसे बड़ा सवाल उठता है वह यह कि क्या युद्धविराम वाकई में सही निर्णय था? मुमकिन है कि आवाम की इसमें अलग अलग राय हो और इसकी संभावना भी प्रबल है कि जब 25-50 साल बाद इतिहास लिखा जाए तो ऑपरेशन सिंदूर को भी आलोचनाओं का सामना करना पड़े क्योंकि इस युद्ध में और पूर्व में भारत पाकिस्तान के बीच हुए युद्धों और संघर्षों में कई समानताएं हैं जहां भारत निर्णायक बढ़त के बाबजूद भी अपने कदम किसी तीसरे पक्ष के दबाव में पीछे खींच लेता है, जिसका जिक्र आज भी न केवल राजनितिक गलियारों में होता है बल्कि आवाम भी भारत की बड़ी भूल के रूप में इसे देखती है खासकर पाक अधिकृत काश्मीर को लेकर जहां बार बार मौका मिलने पर भी हम आज भी खाली हांथ हैं और यही क्षेत्र आतंकवाद का प्रमुख अड्डा है। बिना किसी शर्त के युद्धविराम वो भी पाकिस्तान जैसे पड़ोसी मुल्क के साथ करना बिल्कुल सही नही हो सकता और पाकिस्तान पर भरोसा करना बेइमानी है वह भी तब जब इतिहास साक्षात् गवाह हो। इस लिहाज से देखा जाए तो प्रभावी एवं निर्णायक बढ़त के बावजूद युद्धविराम की घोषणा करना एक बड़ी गलती हो सकती है और वह भी तब जब दुश्मन देश घोर आर्थिक बदहाली कंगाली और गृहयुद्ध जैसे हालातों से जूझ रहा हो। 

दूसरी तरफ यदि हाल के एक दशक में भारत की अप्रत्याशित प्रगति खासतौर पर आर्थिक एवं सैन्य क्षेत्र में जिसके कारण विश्व पटल पर भारत का कद बढ़ा है, को देखा जाए एवं वर्तमान में विद्यमान विभिन्न परिस्थितियों और चुनौतियों जैसे रूस यूक्रेन, इजरायल हमास युद्ध, इजरायल और ईरान का हाल के दिनों में विध्वंशक वार पलटवार जिसका कि कोई अंत हाल फिलहाल तो नजर नहीं आता, जिसमे व्यापक पैमाने पर जन धन की हानि हो रही है और जिसका प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है, का आंकलन करने पर युद्धविराम का निर्णय अत्यधिक तर्क संगत लगता है। क्योंकि तकनीक के इस युग में युद्ध का स्वरुप भी काफी तेजी से बदल रहा है और पारंपरिक युद्ध की जगह अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल युद्ध में हो रहा है। अब विशालकाय सेना से कहीं ज्यादा युद्ध में उन्नत तकनीकी का चलन है यही कारण है कि यूक्रेन जैसे देश भी रूस जैसे महाशक्ति के सामने कई वर्षों से युद्ध के मैदान में हैं। ऑपरेशन सिंदूर पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले का जवाब था और आतंक के आकाओं और आतंकवादियों को भारत का संदेश था कि आतंकवाद को कुचलने के लिए कोई सरहदी सीमा मायने नही रखती और जब यह मकसद पूरा हो गया तो युद्ध को लंबा खींचने का कोई तुक नही बनता है। इसके अलावा कई और कारण थे जैसे लाख दावों के बाबजूद कमजोर विदेश नीति, वैश्विक और क्षेत्रीय अस्थिरता जहां भारत के दो बड़े सहयोगी रूस और इजरायल युद्ध से जूझ रहे हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का दोहरा रवैया जिनके लिए स्वयं का फायदा और यशगान ही सर्वोत्तम है। बांग्लादेश के आंतरिक हालात और चीन की विस्तारवादी और निवेश नीति जिसके चंगुल में लगभग सभी पड़ोसी देश फंसते जा रहें हैं, ये सभी ऐसे कारण हैं जो युद्धविराम के निर्णय को ज्यादा तर्क संगत ठहराते हैं। वैसे भी दक्षिण एशिया में भारत का प्रतिद्वंद्वी चीन है न कि पाकिस्तान। इसलिए अनावश्यक रूप से पाकिस्तान से लंबे समय तक भिड़कर अपनी आर्थिक और सैन्य ताकत को कमजोर करने जैसा है। क्योंकि युद्ध छोटा या बड़ा नही होता, युद्ध युद्ध होता है। इसलिए यह कहना उचित है कि युद्धविराम सरकार का नज़ाकत भरा फैसला है। 

योर्स थिंकर नीरज शर्मा, 
पंचवटी कॉलोनी, इंदौर

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