Sunday, June 29, 2025

पैगम्बर साहब का जीवन हर युग के लिए प्रकाश की किरण है, इमाम हुसैन इसी राह के पथ-प्रदर्शक थे: मौलाना अब्बास बाकरी


डॉक्टर इफ्फत ज़किया
नित्य संदेश, मेरठ। रविवार 3 मुहर्रम को शहर के सभी इमामबाड़ों में इमाम हुसैन (अ.स. ) के गम का सिलसिला जारी रहा।

इमामबारगाह छोटी कर्बला में अशरे को खिताब कर रहे खतीब ए अहल-उल -बैत ( अ.स. ) मौलाना सैयद अब्बास बाकरी ने "उस्वा ए - हुसैनी " शीर्षक के तहत लोगों को संबोधित करते हुए सूरह अल-अहज़ाब की आयत नंबर 21 "बेशक अल्लाह के रसूल में तुम्हारे लिए एक अच्छा आदर्श था" को चर्चा का विषय बनाया और कहा कि "पवित्र पैगंबर (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) हर युग में पूरी दुनिया के लिए आदर्श रहे हैं। पैगंबर (स.अ.) की इसी सुन्नत पर चलते हुए शहीदों के सरदार इमाम हुसैन (अ.स) ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी, लेकिन कभी झूठ के सामने अपना सिर नहीं झुकाया। आप (अ.स) सच्चाई के साथ सिसा पिलाई हुई दिवार की तरह डटे रहे और मज़लूमों की आवाज़ बने। मौलाना नें आगे कहा कि अगर उम्मत ए मुस्लिमा रसूल (स.अ. ) के बताए रास्ते पर चलती और इमाम हुसैन (अ.स) की तरह अहंकार और झूठ के खिलाफ खड़ी होती तो आज उसे अपमान और जिल्लत नहीं झेलनी पड़ती। आज सिर्फ ईरान ही है जो हुसैनी चरित्र का व्यावहारिक उदाहरण बनकर वैश्विक अहंकारी शक्तियों के खिलाफ डटकर खड़ा है और मज़लूमों के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद कर रहा है।'' 

मजलिस में मौलाना ने कर्बला में प्रवेश के बाद इमाम हुसैन द्वारा नहर के किनारे खेमें लगाने और यजीद की सेना के विरोध के बाद नहर के किनारे से खेमें हटा दिए जाने की घटनाओं को बयान किया। इमाम हुसैन पर किए जुल्म को सुनकर मातम करने वाले लोग फूट-फूट कर रो पड़े। फिरोज अली ने सोज़ ख्वानी की। 
नमाज ज़ौहरैन के बाद अज़ा खाना शाह कर्बला वक्फ मंसबिया में अपने शीर्षक "फज़ल-ए - ईलाही और हिदायत की ज़िम्मेदारी" के तहत मजलिस को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध धर्मगुरु मौलाना शब्बर हुसैन खाँ ने कहा, "इस्लाम कभी भी आतंकवाद का समर्थन नहीं करता है, बल्कि हमें जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने की शिक्षा देता है। इस संबंध में मुंशी प्रेमचंद ने अपनी पुस्तक "कर्बला" में लिखा है कि यह भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस्लाम आक्रमणकारियों के माध्यम से यहां पहुंचा। काश, इस्लाम मुहम्मद साहब के आचरण और रीति-रिवाजों तथा इमाम हुसैन की शिक्षाओं के माध्यम से भारत पहुंचा होता।" मौलाना ने आगे कहा कि इस्लाम में जितने भी हिदायतकार आए उन्होंने अमन और सुरक्षा का पैग़ाम दिया और जुल्म व आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाई, कर्बला इसका बेहतरीन उदाहरण है। 

मजलिस में मौलाना ने हजरत हुर की शहादत बयान की। सोज़ ख्वानी दानिश मेरठी ने की। शहर की अन्य इमामबारगाहों में निर्धारित समय पर मजलिसों और मातम का सिलसिला जारी रहा। नमाज़ मग़रिबैन के बाद जाहिदियान स्थित इमामबारगाह से जुलजनाह का जुलूस निकला। इस जुलूस के आयोजक सैयद यूसुफ अली जैदी व हाजी शमशाद अली जैदी थे। देर रात जुलूस हाजी शमशाद अली के घर पहुंचा और समाप्त हुआ। 

शहर की तमाम मातमी अंजुमनों ने नौहा ख्वानी और मातम किया। मुहर्रम कमेटी की मीडिया प्रभारी डॉ. इफ्फत जकिया ने बताया कि कल मजलिस के बाद देहली गेट थाना स्थित अजाखाना डॉ. इकबाल हुसैन से जुलूस निकलेगा और इमामबारगाह छोटी कर्बला पहुंच कर समाप्त होगा।

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