Sunday, June 8, 2025

आज की सभ्यता ने डरना सिखा दिया: प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी


नित्य संदेश ब्यूरो 
मेरठ। रविवार को अंतिम दिन कथा में प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी ने बताया कि आज की सभ्यता ने डरना सिखा दिया है। उन्होंने अथर्ववेद के अभय मन्त्र को स्पष्ट किया। आज की कथा में ऋषियों की प्रधान कथाएं हुईं।

ऋषि नारद ने भागवत धर्म बताया। जनक निमि की सभा में ऋषभ के नौ पुत्र कवि, हरि, आविर्होत्र, द्रुमिल और करभाजन आदि पहुंचे। विदेह ने पूछा - भगवान् कौन है? कवि ने बताया भगवान् जो किसी से न डरे। भागवत कौन है? उत्तर - जो भगवान् की सेवा करे। माया क्या है? जो भगवान् की पाँच धातुओं से भय उत्पन्न करे। द्रुमिल ने बताया जो बालवत् भगवान् को कण कण में ग्रहण करता है, वो भागवत है। चमस् ने बताया जो भगवान् के अंगों में चारों आश्रम देखता है, वो भागवत है। सभी देवताओं ने कृष्ण से अपने धाम चलने की प्रार्थना की। 

ऋषि उद्धव ने कृष्ण से पूछा, हम क्या करें? कृष्ण ने यदु और अवधूत संवाद में 24 गुरुओं की कथा सुनाई। पृथ्वी, वायु, अजगर, अर्भक, कुमारी, कुकर, मधुमक्खी आदि अभय की शिक्षा देते हैं कि न डरो, न डराओ। खट्वाङ्ग ऋषि का भिक्षुगीत सुनाया। भय के कारण धन, सम्पत्ति आदि हैं। ऐल पुरुरवा की कथा हुई। जिसका सार है काम भय का कारण है। भय के छः साधन काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ और मात्सर्य में, जिनके कारण व्यक्ति भययुक्त होकर भगवान् से दूर हो जाता है। 

शुकदेव ने परीक्षित को पृथ्वी के हास की कथा सुनाई। मृत्यु का भय ही तक्षक है। मार्कण्डेय ऋषि की कथा हुई। इसी के साथ आज आर्षी भागवतीकथा सम्पन्न हुई। इसके बाद कथासभा के सभी सदस्य गङ्गास्नान के लिए गए और गङ्गा में अवगाहन कर भागवत के अमृतरस का पान किया।

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