नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। आर्य समाज सदर में यज्ञ के बाद संजय याज्ञिक का प्रवचन हुआ। याज्ञिक ने वेद मंत्र " तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमु- च्चरत । पश्येम शरद शतं जीवेमं शरदः शतं...... ।।
मंत्र की बहुत सुन्दर व सरल शब्दों में व्याख्या करते हुए बताया कि मंत्र के प्रथम भाग में मनुष्य को ईश्वर की कृपा से प्रकृति के माध्यम से वे सब दैवी शक्तियां पहले से ही प्राप्त हैं, जिनसे मनुष्य अपने जीवन में उन शक्तियों का उपयोग कर प्रति फल में आनन्द को प्राप्त होता है। बस उन शक्तियों को जगाने का काम कोई एक योग्य विद्वान (आचार्य /गुरु) ही कर सकता है। याज्ञिक जी ने मंत्र के दूसरे भाग का उल्लेख करते हुए बताया कि प्रथम भाग में हमें जैसे कि बाहु बल, वैचारिक बल, बौधिक बल तथा आत्मिक बल के माध्यम से जो भी प्राप्त हुआ, उसका अपने विवेक से दूसरों को भी प्राप्त कराना मनुष्य का कर्तव्य है। इस प्रकार अन्य के जीवन में भी खुशहाली आयेगी।
आपने आशीर्वाद शब्द की व्याख्या करते हुए बताया कि किसी को आशीर्वाद देते समय उस योग्य व्यक्ति जो आशीर्वाद दे रहा है, वह अपने पवित्र भावों को उस व्यक्ति के कल्याण के लिए उसके ऊपर उड़ेल देता है, जिसको आशीर्वाद देता है।
कार्यक्रम में मांगेराम (प्रधान), समरेन्द्र (मंत्री), ज्ञानेन्द्र, महेश, चंद्रकांत, अनिल कुमारी, अपर्णा, मणि गर्ग, राजेन्द्र, श्रीचन्द, पंडित जगदीश शास्त्री आदि शामिल रहे।
No comments:
Post a Comment