-माता धूमावती प्रकट्य
दिवस पर मंदिर मे हुआ हवन और भंडारे का आयोजन
नरेश कुमार
नित्य संदेश, मेरठ। माँ धूमावती जयंती पर्व ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से मां धूमावती की पूजा की जाती है, जो दस महाविद्याओं में से एक हैं। उनके बारे में मान्यता है कि वे विधवा रूप में पूजी जाती हैं और उनका वाहन कौआ है।
मंगलवार को माता धूमावती
प्रकट्य दिवस पर शहर के प्रमुख मंदिर मां बगलामुखी धाम यज्ञशाला श्री दक्षिणेश्वरी
काली पीठ प्राचीन वन खंडेश्वर महादेव शिव मंदिर कैलाश प्रकाश स्टेडियम चौराहा साकेत
मंदिर में हवन पूजन के बाद भण्डारे का आयोजन किया गया। मन्दिर पुजारी आचार्य प्रदीप
गोस्वामी ने बताया कि ये एक विशेष दिन है, जिसमें दो शक्तिशाली देवी-देवियों की पूजा
की जाती है। पहले, देवी धूमावती की पूजा की जाती है, जो जीवन के कठिन समयों में हमें
वैराग्य और स्पष्टता की शिक्षा देती हैं। वे हमें यह समझाती हैं कि संसारिक इच्छाओं
से ऊपर उठकर, हम आत्मिक उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं। धूमावती का रूप एक विधवा महिला
के रूप में होता है, जो हमें संसारिक बंधनों से मुक्ति की प्रेरणा देती है। माता धूमावती
प्रकट्य दिवस पर मंदिर परिसर मे हुए हवन व भंडारे के अवसर पर आचार्य प्रदीप गोस्वामी,
आशा गोस्वामी, कामेश शर्मा, नरेश कुमार, गोपाल भैया, विपुल सिंघल, हिमांशु वर्मा, विशाल
सिंघल आदि मौजूद रहे।
धूमावती माता की उत्पत्ति
की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार,
एक बार माता पार्वती को अत्यधिक भूख लगी। कैलाश पर्वत पर भोजन की कोई व्यवस्था नहीं
थी, और भगवान शिव समाधि में लीन थे। पार्वती जी ने बार-बार भोजन की प्रार्थना की, लेकिन
शिव जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। भूख से व्याकुल होकर, पार्वती जी ने भगवान शिव को ही
निगल लिया। इससे उनके शरीर में विष का प्रभाव पड़ा और उनका रूप विकृत हो गया। भगवान
शिव ने बाहर आकर कहा कि अब से तुम विधवा रूप में पूजी जाओगी और तुम्हारा नाम धूमावती
होगा।
पूजा विधि और महत्व
मन्दिर पुजारी आचार्य प्रदीप
गोस्वामी ने बताया कि धूमावती जयंती के दिन विशेष रूप से सफेद वस्त्र पहनकर, सफेद फूलों
और अन्य पूजन सामग्री से मां की पूजा की जाती है। रुद्राक्ष की माला से "ॐ धूं
धूं धूमावत्यै फट्" मंत्र का जाप किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से नीम की पत्तियों,
काली मिर्च, राई और तिल से हवन करने की परंपरा है, जिससे शत्रुओं से मुक्ति और दरिद्रता
का नाश होता है।
मां धूमावती का कौआ, रूप
डरावना
मां धूमावती का स्वरूप
विधवा, वृद्धा और कांतिहीन होता है। वे श्वेत वस्त्र पहनती हैं और उनका वाहन कौआ है।
उनका रूप डरावना और विकृत होता है, जो जीवन के कठिन समय और संघर्षों का प्रतीक है।
हालांकि, उनकी पूजा से जीवन में आने वाली कठिनाइयों से उबरने और मानसिक शांति प्राप्त
करने की मान्यता है।
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