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Thursday, May 29, 2025

अंतर है सिंदूर भेंट करने और मांग भरने वाले में


नित्य संदेश। हमारे यहां जैसे ही सत्ता पक्ष द्वारा कहा गया कि ऑपरेशन‌ सिंदूर की सफलता के उपलक्ष में घर-घर सिंदूर बांटा जाएगा वैसे ही घटिया मानसिकता की नेहा सिंह राठौर और उसके समर्थित लोग, वामपंथियों व हिंदू समाज से इतर वाले लोगो को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने छाती पीटकर सवाल खड़ा कर दिया कि क्या अब सुहागनें भाजपा का दिया सिंदूर लगाएगी???

ऐसा कहकर ऐसी सोच वाले लोगो ने एक बार फिर साबित कर दिया कि ये लोग भारतीय संस्कृति, ज्ञान से कितने अपरिचित है और कितनी निम्न स्तर की गलत सोच रखते है। ये वामपंथी खुद ऐसे सवाल पूछकर, हर बार की तरह, इस बार भी खुद का ही मजाक बनवा रहे है। ये लोग खुद मांग में सिंदूर नहीं लगाते इसलिए भूल चुके है कि अपने देश में सिंदूर दान‌ का, सिंदूर प्रसाद का, सिंदूर भेंट का, सिंदूर खेला का और सिंदूर लगाने‌ का कितना बड़ा महत्व है। यह भेंट सीधे 'सदा सुहागन रहो' के आशीर्वाद की मंगलकामनाएं है। 

अपनी भारतीय संस्कृति सभ्यता में सिंदूर हर कोई आपको भेंट कर सकता है, लेकिन लगाता मांग में सिर्फ पति ही है। वह भी मात्र एक बार अग्नि को साक्षी मानकर। यह फर्क है भेंट करे सिंदूर को लेने और पति के द्वारा मांग सजाने में। 

मैंने लगभग पूरा भारत भ्रमण किया है। मैं देवी मंदिरों व शक्तिपीठों में भी जाती हूं और आप सब भी गए ही होंगे। शक्तिपीठों तथा मंदिरों में प्रसाद के रूप में सिंदूर मिलता ही है। जो आपको पंडित जी आशीर्वाद के रुप में देते है। जिसे लगाने से आप आकर्षक ही नहीं लगते बल्कि आपका आज्ञा चक्र और ओरा तेजस्वी बनता है। मंदिरों में सुहागने मांग में लगाती है और देवी से सौभाग्यवती रहने की कामना करती है, वे उस सिंदूर को साथ में कागज की पुड़ियां में, वहां से प्रसाद रूप में लेकर आती है। वह सिंदूर खरीदा नहीं जाता जबकि सबके द्वारा चढ़ाया जाता है। 

वहीं कोई भी सुहागनों का आयोजन हो जैसे संक्रांति, तीज, चौथ, संकटा, ओसान मैया व्रत आदि तो सुहागने आपस में एक-दूसरे को सिंदूर भेंट करती है। तो बहन, बेटियों को कोई वस्त्रों का शगुन देना हो तो भी अपने परिवारों में सिंदूर, मेहंदी, चुड़ी व अन्य श्रंगार रखकर देते ही देते है। इसे विपक्षी मानसिकता वालों द्वारा गलत परिभाषित करना मानो अपने सनातन हिंदू धर्म के नियमों को ही नहीं समझना, दर्शाता है।

सिंदूर भेंट की परंपरा, महत्वपूर्ण है और उसे लेकर भ्रांतियां फैलाना गलत है। सिंदूर भारतीय संस्कृति और विशेषकर हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।‌ यह केवल एक श्रंगार सामग्री नहीं, बल्कि सुहाग, सौभाग्य और अपनी धार्मिक आस्था का भी प्रतीक है। अक्सर सिंदूर के प्रयोग और इसके विभिन्न पहलुओं को लेकर वे लोग गलतफहमी फैलाते है जो आधुनिक हो चुके है और इसे नहीं लगाते। इन भ्रांतियों का निवारण आवश्यक है। 

पहले तो सभी को यह बात गांठ बांधनी चाहिए कि सिंदूर दान और मांग भरने में जमीन आसमान का अंतर है। यह नितांत सत्य है कि सिंदूर दान कोई भी, किसी को भी कर सकता है। यह शक्ति, सौभाग्य का प्रतीक है। मंदिरों में प्रसाद के रूप में सिंदूर मिलना, किसी शुभ अवसर पर बहन-बेटियों को शगुन के तौर पर सिंदूर देना, ये सभी सिंदूर के दान के ही तो रूप हैं। यह दर्शाता है कि सिंदूर का संबंध केवल पति-पत्नी के रिश्ते तक सीमित नहीं, बल्कि यह शुभता, आशीर्वाद और मंगल का प्रतीक भी है। जिसे व्यापक रूप से साझा किया जा सकता है। 

हालांकि, पति द्वारा पत्नी की मांग में सिंदूर भरना एक विशेष और पवित्र रस्म है, जो विवाह संस्कार का एक अभिन्न अंग है. यह क्रिया पति-पत्नी के अटूट बंधन, वैवाहिक सुख और पत्नी के सुहाग का प्रतीक है। यह दोनों के बीच के गहरे प्रेम, विश्वास और समर्पण को दर्शाता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि अन्य संदर्भों में सिंदूर का प्रयोग या दान गलत है; बल्कि यह केवल उसके एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण पहलू को रेखांकित करता है।

सिंदूर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व नकारा ही नहीं जा सकता। धार्मिक रुप से लगभग सभी देवी मंदिरों और शक्तिपीठों में सिंदूर को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। यह दर्शाता है कि सिंदूर देवत्व, शक्ति और पवित्रता से जुड़ा है। मान्यता है कि सिंदूर लगाने से देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। 
 
वही सांस्कृतिक दृष्टि से संक्रांति, बंगाल में दुर्गा पूजा के समय सिंदूर खेला जैसे पर्वों पर, या किसी भी सुहागनों के आयोजन में, सिंदूर का आदान-प्रदान और उपहार के रूप में देना एक सामान्य भारतीय प्रथा है। यह आपसी प्रेम, सम्मान और शुभकामनाओं का प्रतीक है। जब बहन-बेटियों को शगुन दिया जाता है, तो सिंदूर रखना इस बात का द्योतक है कि उनके सुहाग और सौभाग्य की कामना की जा रही है। भाजपा में मोदी जी, योगी जी भी महिलाओं को अपनी बहन बेटी समझकर यह सिंदूर भेंट करने की सोच को आगे क्रियांवित करना चाहते है। 

वही सामाजिक तौर पर सिंदूर विवाहित हिंदू महिला की पहचान का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। जब पहलगाम घटना में सिर्फ हिंदू पुरुषों को धर्म पूछकर मारा तो भारत की सेना व सत्ता ने आतंकवादियों को आपरेशन सिंदूर द्वारा सबक सिखाया है। तो यह सिंदूर भेंट उसकी भी स्मृति है कि भारत की बहन बेटियों के सौभाग्य को कोई आतंकवादी नहीं खत्म कर सकता। 

अंततः विपक्षी लोग सिंदूर के विभिन्न उपयोगों को लेकर भ्रमित कर रहे हैं और इसे केवल पति द्वारा मांग भरने तक ही सीमित बता रहे हैं। जो उनकी निजी जलन के सिवाय कुछ ओर नहीं है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि सिंदूर का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व कहीं अधिक व्यापक है। सिंदूर दान करना या इसे शुभ अवसर पर देना, धर्म के नियमों के विरुद्ध नहीं, बल्कि इसका एक अभिन्न अंग है। यह धर्म के उन पहलुओं को दर्शाता है जो शुभता, दान और आशीर्वाद को महत्व देते हैं। 

सिंदूर भारतीय परंपरा में एक बहुआयामी प्रतीक है। जबकि पति द्वारा पत्नी की मांग में सिंदूर भरना वैवाहिक जीवन का एक पवित्र प्रतीक है, सिंदूर का दान और विभिन्न शुभ अवसरों पर इसका उपयोग भी उतना ही महत्वपूर्ण और धर्मसम्मत है। इसे गलत परिभाषित करना वास्तव में भारतीय संस्कृति और धर्म के गहरे नियमों और प्रतीकों को समझने की कमी को ही दर्शाता है। अतः ऐसे कुबुद्धि वाले विपक्षी, वामपंथी मानसिकता वालों से सतर्क रहे और जो भी बहन-भाई विवाह समारोह में उपहार स्वरूप सिंदूर दें तो, उसे प्रसन्नता से सौभाग्यशाली उपहार समझकर लें।

लेखिका 
सपना सी.पी. साहू 'स्वप्निल'
इंदौर, मध्य प्रदेश 

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