Friday, April 18, 2025

अनिश्चितता की भंवर में विश्व


प्रभात कुमार रॉय
नित्य संदेश। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अपने प्रथम कार्यकाल में केवल चीन के विरुद्ध व्यापार युद्ध का आगाज किया गया था। अमेरिका में चीन द्वारा निर्यात किए जाने वाले सामान पर पच्चीस प्रतिशत टैरिफ आयद कर दिया गया था। पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में भी चीन से आयातित सामान पर ट्रंप सरकार द्वारा आयद  किए गए टैरिफ को बाकायदा जारी रखा गया.. किंतु अपने दूसरे कार्यकाल में राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत सहित समस्त विश्व के विरुद्ध व्यापार युद्ध का ऐलान कर दिया है। डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन पर 125 प्रतिशत टैरिफ आयद कर दिया गया है। व्यापार युद्ध में चीन द्वारा अमेरिका के विरुद्ध अपनी जवाबी कार्यवाही अंजाम देते हुए,  चीन द्वारा अमेरिका से आयातित सामान पर 125 प्रतिशत टैरिफ आयद करने का ऐलान कर दिया गया।

अमेरिकन हुकूमत द्वारा अधिकतर देशों को फिलहाल आयद किए गए टैरिफ रेट को आगामी 90 दिनों के लिए स्थगित करके कुछ राहत प्रदान कर दी गई है। यदि डोनाल्ड ट्रंप 90 दिनों के टैरिफ के स्थगन के पश्चात पूर्व प्रस्तावित अपने टैरिफ योजनाओं पर बाकायदा अमल अंजाम देते हैं, तो फिर विगत वर्ष के मुकाबले 28 प्रतिशत टैरिफ दर से इस वर्ष अमेरिका को भारत के निर्यात में तकरीबन आठ अरब डॉलर अथवा तकरीबन सात प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। वस्तुत: विश्व पटल पर भारत पांचवीं सबसे बड़ी और तीव्र गति से विकास करती हुई अर्थव्यवस्था है। इसके बावजूद संरक्षणवादी व्यापार नीतियों द्वारा भारत को वैश्विक व्यापार की प्रतिस्पर्धा में पीछे धकेल दिया है। भारत में टैरिफ रेट तुलनात्मक तौर पर ऊंचे रहे हैं। वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी महज दो प्रतिशत से भी कम रही है। डोनाल्ड ट्रंप के प्रेसिडेंट निर्वाचित होने के तत्पश्चात अमेरिका की व्यापार नीतियों में बुनियादी बदलाव आ गया है। भारत को भी इस विकट नीतिगत बदलाव से यकीनन जूझना ही होगा। वैश्विक व्यापार पर निर्भर रहने वाले मुल्कों के मुकाबले भारत इन मुश्किल हालात में किसी हद तक खुद को निश्चिंत महसूस कर सकता है, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था की निर्भरता वैश्विक व्यापार पर अत्यंत कमतर बनी रही है. वैश्विक व्यापार के क्षेत्र में भारत का कमतर योगदान वस्तुतः भारत के पक्ष में प्रतिबिंब हो सकता है। भारत आमतौर पर वैश्विक व्यापार से किनारा करता रहा है और यही बात संभवत हमारे लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। लेकिन इस स्थिति से भारतवासी कदाचित संतुष्ट नहीं हो सकते, भारत को वैश्विक व्यापार में नए अवसरों को तलाशने के लिए सदैव तत्पर रहना होगा। साथ ही वैश्विक व्यापार के लिए शनः शनः रणनीतिक तौर पर संरक्षणवादी नीतियों का परित्याग करना होगा। उल्लेखनीय है भारत द्वारा अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझोता करने के लिए कूटनीतिक वार्ता की जा रही है. जिनमें अब और तेजी आने की संभावना है.  

ट्रंप के टैरिफ ने जहां विदेशों में माल बेचने को और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाया है, वहीं दुनिया के देशों को नये व्यापारिक साझेदारों और मंडियां खोजने पर विवश भी किया है. भारत को इसका लाभ उठाकर यूरोपीय संघ, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते अंजाम देने चाहिए. भारत को इलेक्ट्रॉनिक और मोटर के कल-पुर्जों और दवाओं के एपीआई का सप्लाई चेन सुरक्षित बनाने के लिए भी अपने देश में निर्मित किए जाने की प्राथमिकता देनी चाहिए. इससे चीन के साथ चल रहे व्यापार घाटे और पूंजी पलायन में भी कमी आ जाएगी. भारत के दवा उद्योग पर भी टैरिफ की तलवार लटकी है, क्योंकि उसके एपीआई रसायन चीन से आयात किये जा रहे हैं।

यह सही है कि पिछले 30-40 वर्ष से अमेरिका को निरंतर वैश्विक व्यापार में घाटा हो रहा है और उसकी तकरीबन एक लाख करोड़ डॉलर पूंजी प्रतिवर्ष  लाभ कमाने वाले देशों में जा रही है. इनमें चीन, यूरोपीय संघ, आसियान, मेक्सिको, वियतनाम, जापान और कनाडा प्रमुख हैं. विगत चार दशकों के कालखंड में अमेरिका के 90 हजार कारखाने बंद हुए हैं और उन कारखानों में काम करने वाले 55 लाख कर्मचारियों की नौकरियां चली गई हैं. डोनॉल्ड ट्रंप अमेरिका के इसी व्यापार घाटे को घटा करके अमेरिकी पूंजी का पलायन रोकना चाहते हैं और अमेरिका के विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्स्थापित करना चाहते हैं. ट्रंप दुनिया के तमाम देशों पर "रेसिप्रोकल टैरिफ़" या बराबर का टैरिफ़ लगाना चाहते हैं यानी उन देशों के सामानों पर उतना ही आयात शुल्क लगाना जितना वे अमेरिकी सामानों पर आयद करते हैं. राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि अन्य देश अमेरिकी सामानों के आयात पर, अमेरिका को निर्यात होने वाले अपने सामानों की तुलना में अधिक टैरिफ़ लगाते हैं. ट्रंप का मानना है कि अमेरिका के "व्यापारिक साझेदार अमेरिका के साथ भेदभाव करते हैं और ऐसा दोस्त और विरोधी, दोनों तरह के देश करते हैं."

भारत के अमेरिका के साथ समझोतावादी रुख से एकदम विपरीत चीन ने अमेरिका द्वारा प्रस्तुत की गई  व्यापार युद्ध की ललकार को बाकायदा स्वीकार कर लिया है। विस्तारवादी चीन ने अमेरिका के साम्राज्यवादी चेहरे से नकाब उतारने की पहल अंजाम दे दी है। अपने आर्थिक पराभव से परिपूर्ण पतनशील युग में महाशक्ति अमेरिका के प्रेसिडेंट ट्रंप अपने फरमानों से सारी दुनिया का आर्थिक एजेंडा तय करने की हैसियत में है अथवा नहीं है, इसका फैसला तो अभी शेष है तथा भविष्य में होना है। व्यापार युद्ध स्वीकार करने के चीन के संकल्प की तुलना वस्तुतः तीन वर्ष पहले रूस द्वारा अंजाम दी गई आक्रामक सैन्य पहल से भी की जा सकती है। जबकि यूक्रेन के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही शुरू करके अमेरिका और उसके नेतृत्व में नाटो अर्थात अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन  को रणनीतिक क्षेत्रों में अपनी सैन्य शर्तें थोप देने की ताकत को रूस द्वारा प्रबल आक्रामक सैन्य चुनौती पेश की गई थी। वस्तुत: विश्व पटल पर परिवर्तित होते हुए शक्ति संतुलन के परिदृश्य को समझने और स्वीकार करने तत्परता अमेरिका द्वारा कदाचित दिखाई नहीं गई। अमेरिका यदि अपने नव साम्राज्यवादी फितरत को तिलांजलि दे देता तो यह संभव था कि सन् 2022 में प्रारम्भ हुए यूक्रेन युद्ध और उससे भी कहीं घातक व्यापार युद्ध के भयानक दुष्प्रभावों से दुनिया संभवत बच निकली होती। वाशिंगटन स्थित चीनी दूतावास की सोशल मीडिया साइट एक्स कहा गया  कि अगर अमेरिका व्यापार युद्ध या किसी अन्य प्रकार का युद्ध चीन के विरुद्ध लड़ना चाहता है तो हम उसे युद्ध को आखिर तक लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है।

पश्चिमी के साम्राज्यवादी देशों द्वारा तकरीबन तीन सौ  साल तक बाकी दुनिया पर अपनी हुकूमत कायम रखी गईं। साम्राज्यवादी फितरत की घातक मानसिकता आज तक अमेरिका एवं पश्चिमी नाटो देशों की अवचेतना में बरकरार बनी हुई है। इसलिए इसलिए अमेरिका एवं पश्चिमी जगत बाकी देशों की जटिल समस्याओं पर कदाचित तवज्जो प्रदान नहीं करते। चीन की हुकूमत ने अमेरिकन व्यापार युद्ध की चुनौती को स्वीकार करने के साथ यह स्पष्ट कर दिया कि वह व्यापार संतुलन संबंधी अमेरिकन चिंताओं  पर बातचीत करने के लिए तत्पर है। मगर अमेरिका द्वारा चीन के विरुद्ध एक तरफा कार्रवाई अंजाम दिए जाने के ऐलान को चीन कदापि स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। अमेरिकन अखबार  वॉल स्ट्रीट जनरल की एक रिपोर्ट के मुताबिक विगत ढाई महीनों में चीन ने सीधी वार्ता के लिए अमेरिकी प्रशासन से संपर्क साधने की निरंतर कोशिश जारी रखी । किंतु अमेरिकी प्रशासनिक अधिकारियों ने चीन की प्रत्येक पेशकश को अस्वीकार कर दिया।

अमेरिकन प्रेसिडेंट डॉनल्ड ट्रंप को बड़ा गुमान रहा कि टैरिफ में बढ़ोतरी का ऐलान होने के तत्पश्चात चीन सहित बाकी मुल्कों की हुकूमत बातचीत के लिए गिड़गिड़ाते हुए अमेरिका के द्वार पर आ जाएंगी। अधिकांश मुल्कों के मामले में ऐसा ही हुआ भी। मगर चीन ने अमेरिका का मुकाबला करने का बड़ा जबरदस्त हौसला दिखाया। चीन इस बात को समझने का कौशल भी दिखाया कि मामला सिर्फ टैरिफ तक कदाचित सीमित नहीं है। जो देश तुरंत टैरिफ घटाने अमेरिकन शर्तों के मुताबिक बातचीत करने के लिए तैयार दिखाई दिए, उनके समक्ष अमेरिका ने कुछ अन्य सख्त शर्तों को पेश कर दिया। चीन ने प्रमुख  खनिजों के अमेरिका को निर्यात करने पर प्रतिबंध आयद कर दिया।  चीन के ऐसे कड़े कदमों का अंदाजा अमेरिका के प्रशासन तथा अमेरिका कथित आर्थिक विशेषज्ञ विश्लेषकों को भी नहीं था। सन् 1991 सोवियत संघ के पराभव के पश्चात विगत चार दशकों के काल में अमेरिका के विरुद्ध कोई देश तनकर खड़ा नहीं हुआ।

विश्वव्यापी व्यापार युद्ध से अमेरिका को हो रहे निरंतर नुकसान से अमेरिका में ही गंभीर गहन संतोष भड़क उठा है। मगर इस सारे परिदृश्य में चीन के साथ जारी व्यापार युद्ध में किसी को किसी राहत की कोई उम्मीद नहीं है। विगत 25 वर्षो में आर्थिक एवं तकनीकी महाशक्ति के रूप में चीन का उदय हो गया , जोकि आजकल विश्व पटल पर व्यापार युद्ध का मुख्य कारण बना हुआ है। इसकी वजह से अमेरिका के आर्थिक पतन की पटकथा तैयार हुई है। चीन के आर्थिक तथा सैन्य उभार को रोकना ही अमेरिका की प्रमुख राष्ट्रीय नीति है।

 विश्व व्यापार संगठन के नियम कायदे कानूनों का सरासर उल्लंघन करके अमेरिका के राष्ट्रपति मनमाना आचरण अंजाम दे रहे हैं। ऐतिहासिक रूप से अमेरिका द्वारा सन् 1928 में आर्थिक संरक्षण की नीति अख्तियार की गई थी, इसका नतीजा सामने आया वर्ष 1929-30 के काल में जबकि अमेरिका ने भयानक आर्थिक मंदी का दीदार किया.था।  सन् 1971 में अमेरिका के राष्ट्रपति निक्सन ने आर्थिक संरक्षणवाद की नीति आयद की गई थी। परिणाम सामने आया वर्ष 1973-75 में फिर एक दफा अमेरिका को भयंकर आर्थिक मंदी झेलना पड़ी। अब फिर से राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप इतिहास से गंभीर सबक लिए बिना आर्थिक संरक्षणवादी नीति के तहत दुनिया को व्यापार युद्ध में झोंक देने के लिए कटिबद्ध है,. देखिए भविष्य में क्या परिणाम सामने आता है। ट्रंप के अमेरिका ग्रेट अगेन के नारे के तहत.अमेरिका डूबेगा या उभरेगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

(समाप्त)

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